वाक्य रचना के नियम
‘व्याकरण-सिद्ध पदों को मेल के अनुसार यथाक्रम रखने को ही ‘वाक्य-रचना’ कहते है।’ वाक्य का एक पद दूसरे से लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का जो संबंध रखता है, उसे ही ‘मेल’ कहते हैं। जब वाक्य में दो पद एक ही लिंग-वचन-पुरुष-काल और नियम के हों तब वे आपस में मेल, समानता या सादृश्य रखनेवाले कहे जाते हैं।
शुद्ध वाक्यों की रचना के लिए
(i) क्रम
(ii) अन्वय
(iii) प्रयोग से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियमों का ज्ञान आवश्यक है।
(i) क्रम
किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को ‘क्रम’ अथवा ‘पद क्रम’ कहते हैं।
इसके नियम इस प्रकार हैं :-
(i) वाक्य के आरम्भ में कर्ता, मध्य में कर्म और अन्त में क्रिया होनी चाहिए।
उदाहरण जैसे :-
राम ने भोजन किया।
यहाँ कर्ता ‘राम’, कर्म ‘भोजन’ और अन्त में क्रिया ‘क्रिया’ है।
(ii) उद्देश्य या कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को विधेय के पहले रखना चाहिए।
उदाहरण जैसे :-
अच्छे विद्यार्थी धीरे-धीरे पढ़ते हैं।
(iii) कर्ता और कर्म के बीच अधिकरण, अपादान, सम्प्रदान और करण कारक क्रमशः आते हैं।
उदाहरण जैसे :-
राम ने घर में (अधिकरण) आलमारी से (अपादान) मोहन के लिए (सम्प्रदान) हाथ से (करण) किताब निकाली।
(iv) सम्बोधन आरम्भ में आता है।
उदाहरण जैसे :-
हे प्रभु, मुझ पर कृपा करें।
(v) विशेषण विशेष्य या संज्ञा के पहले आता है।
उदाहरण जैसे :-
मेरी काली कमीज कहीं खो गयी।
(vi) क्रियाविशेषण क्रिया के पहले आता है।
उदाहरण जैसे :-
वह तेज दौड़ता है।
(vii) प्रश्रवाचक पद या शब्द उसी संज्ञा के पहले रखा जाता है, जिसके बारे में कुछ पूछा जाय।
उदाहरण जैसे :-
क्या राम सो रहा है ?
क्रम-संबंधी कुछ अन्य बातें
(1) प्रश्नवाचक शब्द को उसी के पहले रखना चाहिए, जिसके विषय में मुख्यतः प्रश्न किया जाता है।
उदाहरण जैसे :-
वह कौन व्यक्ति है ?
(2) यदि पूरा वाक्य ही प्रश्नवाचक हो तो ऐसे शब्द (प्रश्नसूचक) वाक्यारंभ में रखना चाहिए।
उदाहरण जैसे :-
क्या आपको यही बनना था ?
(3) यदि ‘न’ का प्रयोग आदर के लिए आए तो प्रश्नवाचक का चिह्न नहीं आएगा और ‘न’ का प्रयोग अंत में होगा।
उदाहरण जैसे :-
आप मेरे यहाँ पधारिए न।
(4) यदि ‘न’ क्या का अर्थ व्यक्त करे तो अंत में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए और ‘न’ वाक्यान्त में होगा।
उदाहरण जैसे :-
वह आज-कल स्वस्थ है न ?
(5) पूर्वकालिक क्रिया मुख्य क्रिया के पहले आती है।
उदाहरण जैसे :-
वह खाकर विद्यालय जाता है।
(6) विस्मयादिबोधक शब्द प्रायः वाक्यारंभ में आता है।
उदाहरण जैसे :-
वाह ! आपने भी खूब कहा है।
अन्वय
‘अन्वय’ में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभित्र पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता हैं।
कर्ता और क्रिया का मेल
(i) यदि कर्तृवाचक वाक्य में कर्ता विभक्तिरहित है, तो उसकी क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होंगे।
उदाहरण जैसे :-
करीम किताब पढ़ता है।
(ii) यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष के अनेक विभक्तिरहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले ‘और’ संयोजक आया हो, तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मोहन और सोहन सोते हैं।
आशा, उषा और पूर्णिमा स्कूल जाती हैं।
(iii) यदि वाक्य में दो भित्र लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्व समास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुंलिंग बहुवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
नर-नारी गये।
(iv) यदि वाक्य में दो भित्र-भित्र विभक्तिरहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच ‘और’ संयोजक आये, तो उनकी क्रिया पुंलिंग और बहुवचन में होगी.
उदाहरण जैसे :-
राधा और कृष्ण रास रचते हैं।
बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।
(v) यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता हों, तो क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा।
उदाहरण जैसे :-
एक लड़का, दो बूढ़े और तीन लड़कियाँ आती हैं।
(vi) यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय ‘या’ अथवा ‘वा’ रहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी।
उदाहरण जैसे :-
घनश्याम की पाँच दरियाँ व एक कम्बल बिकेगा।
हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी।
मोहन का बैल या सोहन की गायें बिकेंगी।
(vii) यदि उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तम पुरुष के अनुसार होगी।
उदाहरण जैसे :-
वह और हम जायेंगे।
कर्म और क्रिया का मेल
(i) यदि वाक्य में कर्ता ‘ने’ विभक्ति से युक्त हो और कर्म की ‘को’ विभक्ति न हो, तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होगी।
उदाहरण जैसे :-
मोहन ने पुस्तक पढ़ी।
(ii) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति चिह्नों से युक्त हों, तो क्रिया सदा एकवचन पुल्लिंग और अन्यपुरुष में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मैंने कृष्ण को बुलाया।
(iii) यदि कर्ता ‘को’ प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदा पुंलिंग, एकवचन और अन्यपुरुष में होगी।
उदाहरण जैसे :-
तुम्हें (तुमको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
(iv) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्तिरहित कर्म एक साथ आएँ, तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए।
(v) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें, तो क्रिया भी एकवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी।
(vi) यदि वाक्य में भित्र-भित्र लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें और वे ‘और’ से जुड़े हों, तो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मैंने मिठाई और पापड़ खाये।
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