Compound word | Smaas

हिन्दी व्याकरण : समास | Compound

समास की परिभाषा | Compound

समास:- दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द (अर्थपूर्ण शब्द) को समास कहते हैं।
कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ प्रकट करना 'समास' कहलाता है।
अथवा दो या अधिक शब्दों (पदों) का परस्पर संबद्ध बतानेवाले शब्दों अथवा प्रत्ययों का लोप होने पर उन दो या अधिक शब्दों से जो एक स्वतन्त्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते है और उन दो या अधिक शब्दों का जो संयोग होता है, वह समास कहलाता है।
अनेक शब्दों को संक्षिप्त करके नए शब्द बनाने की प्रक्रिया समास कहलाती है।
अर्थात जब कोई दो शब्द मिलकर एक ऐसे नये शब्द का निर्माण करें, जिसका कोई अर्थ हो, ऐसे नए शब्दों को ही समास कहा जाता है।
हिन्दी भाषा में शब्दों की रचना कई विधियों से होती है जिसमे से एक रचना विधि है - समास रचना । समास में दो या अनेक शब्दों के मेल से एक नए शब्द की रचना होती है, जैसे - पुस्तक + आलय = पुस्तकालय ।
मास : समास वह शब्द रचना है, जिसमें दो (या दो से अधिक) अर्थ की दृष्टि से परस्पर स्वतंत्र संबंध रखने वाले, स्वतंत्र शब्द रचना के अंग होते हैं, जैसे – गंगा+जल = गंगाजल ।
समास रचना में प्रायः दो पद (शब्द) होते हैं – पहले पद को पूर्वपद (जैसे – गंगा) और दूसरे को उत्तर पद(जैसे – जल) कहते हैं । समास रचना से बने शब्द को समस्त पद (जैसे – गंगाजल) कहते हैं ।

समास रचना में प्रायः दो पद अर्थात दो शब्द होते हैं अथवा समास में कम-से-कम दो पदों का योग होता है।
उदाहरण जैसे :-
घुड़सवार = घोड़े का सवार;
पहले पद (शब्द) को पूर्वपद और दूसरे या आखिरी पद (शब्द) को उत्तरपद कहा जाता है। साथ ही समास-पद या समस्त-पद बनने पर दो शब्दों को विभक्त करने वाली विभक्तियाँ (ऐसे शब्द जो दो शब्दों को अलग करते हैं,
उदाहरण जैसे :-
का, के, के द्वारा, को, के लिए, या, और, पर, से, में आदि) लुप्त अर्थात गायब हो जाते हैं।
उदाहरण जैसे :-
घुड़सवार = घोड़े का सवार; घोड़े (पूर्वपद) का (विभक्ति) सवार (उत्तरपद)
अब यहाँ नया समास शब्द “घुड़सवार” बनने पर विभक्ति “का” लुप्त हो गयी।

समास विग्रह

समास रचना से बने शब्द (समस्त पद) को अलग-अलग करने को समास विग्रह कहते हैं,
सामासिक शब्दों के बीच के संबंधों को स्पष्ट करना समास-विग्रह कहलाता है। विग्रह के पश्चात सामासिक शब्दों का लोप हो जाता है |
समस्तपद का विग्रह करके उसे पुनः पहले वाली स्थिति में लाने की प्रक्रिया को समास-विग्रह कहते हैं;
जैसे-
देश के लिए भक्ति;
मुरली को धारण किया है जिसने।
राम और लक्ष्मण।
चार राहों का समूह।
महान है जो आत्मा ।
रसोई के लिए घर आदि।
उदाहरण जैसे :-
गंगाजल = गंगा+जल ।
चंद्रमुख = चन्द्र-सा मुख ।

समास के भेद

समास के मुख्य सात भेद है:-

दो शब्द आपस में मिलकर एक समस्त पद की रचना करते हैं। जैसे-राज+पुत्र = राजपुत्र, छोटे+बड़े = छोटे-बड़े आदि समास छ: होते हैं:

  • 1. अव्ययीभाव समास | Adverbial Compound
  • 2. तत्पुरूष समास | Determinative Compound
  • 3. कर्मधारय समास | Appositional Compound
  • 4. द्विगु समास | Numeral Compound
  • 5. द्वंद्व समास | Copulative Compound
  • 6. बहुव्रीहि समास | Attributive Compound
  • 7. नञ समास | Nay Samaas

पदों की प्रधानता के आधार पर समास का वर्गीकरण

  • अव्ययीभाव समास में — पूर्वपद प्रधान होता है।
  • तत्पुरूष, कर्मधारय व द्विगु समास में — उत्तरपद प्रधान होता है।
  • द्वंद्व समास में — दोनों पद प्रधान होते हैं।
  • बहुव्रीहि समास में — दोनों ही पद अप्रधान होते हैं। ( अर्थात इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है )

1. अव्ययीभाव समास | Adverbial Compound

जिस समास का पूर्वपद (पहला पद) अव्यय तथा प्रधान हो (अव्ययव ऐसे शब्दों को कहा जाता है जिनमें लिंग, कारक, काल आदि के कारण भी कोई परिवर्तन न आये अर्थात ऐसे शब्द जो कभी परिवर्तित नहीं होते), ऐसे शब्द को अव्ययीभाव समास कहा जाता है।
पहचान : पहला पद (पहला शब्द) में “अनु, आ, प्रति, भर, यथा, यावत, हर” आदि का प्रयोग होता है।
सरल शब्दो में- जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।
इस समास में समूचा पद क्रियाविशेषण अव्यय हो जाता है। इसमें पहला पद उपसर्ग आदि जाति का अव्यय होता है और वही प्रधान होता है।
अव्ययीभाव का लक्षण है- जिसमे पूर्वपद की प्रधानता हो और सामासिक या समास पद अव्यय हो जाय, उसे अव्ययीभाव समास कहते है।

अव्ययीभाववाले पदों का विग्रह- ऐसे समस्तपदों को तोड़ने में, अर्थात उनका विग्रह करने में हिन्दी में बड़ी कठिनाई होती है, विशेषतः संस्कृत के समस्त पदों का विग्रह करने में हिन्दी में जिन समस्त पदों में द्विरुक्तिमात्र होती है, वहाँ विग्रह करने में केवल दोनों पदों को अलग कर दिया जाता है।

इसमें पूर्वपद अव्यय होता है, अतः समस्त पद की रचना को अव्ययीभाव समास रचना कहते हैं, जैसे – प्रतिदिन, यथासमय, आजन्म, आमरण, बेखटके, भरपेट । यहाँ प्रति, यथा, आ, बे, भर सभी अव्यय हैं ।
उदाहरण जैसे :-

क्रमांकपूर्व पद
(पहला शब्द)
उत्तर पद
(दूसरा शब्द)
समस्त पद
(पूरा शब्द)
समास विग्रह
1यथासंभवयथासंभवजैसा संभव हो
2अनुरूपअनुरूपरूप के योग्य
3प्रतिदिनसप्रतिदिनप्रत्येक दिन
4जन्मआजन्म जन्म से लेकर
5भरपेटभरपेटपेट भर के
6हाथहाथहाथों-हाथहाथ ही हाथ में

अव्ययीभाव समास की पहचान

अव्ययीभाव समास की पहचान के लक्षण - अव्ययीभाव समास को पहचानने के लिए निम्नलिखित विधियाँ अपनायी जा सकती हैं :-
(i) यदि समस्तपद के आरंभ में भर, निर्, प्रति, यथा, बे, आ, ब, उप, यावत्, अधि, अनु आदि उपसर्ग/अव्यय हों।
उदाहरण जैसे :-
प्रत्येक, यथाशक्ति, उपकूल, निर्विवाद अनुरूप, आजीवन आदि।
(ii) यदि समस्तपद वाक्य में क्रियाविशेषण का काम करे।
उदाहरण जैसे :-
उसने भरपेट (क्रियाविशेषण) खाया (क्रिया)



2. तत्पुरूष समास | Determinative Compound

जिस समास में उत्तरपद (बाद का शब्द या आखिरी शब्द) प्रधान होता है तथा दोनों पदों (शब्दों) के बीच का कारक-चिह्न (का, को, के लिए, में, से आदि) लुप्त (गायब) हो जाता है, उसे तत्पुरूष समास कहते हैं ।
इस समास में पूर्व पद गौण और उत्तर पद प्रधान होता है, उदाहरण जैसे :-
अन्य उदाहरण : पुस्तकालय, क्रीडाक्षेत्र, घुड़सवार, रसोईघर, हस्तलिखित, वाल्मिकिरचित, सूखापीडित, पथभ्रष्ट, आपबीती, देशवासी, पनचक्की, मालगाड़ी, रेलगाड़ी, दहीबड़ा, बनमानुष ।
अन्य उदाहरण जैसे :-

1राजा का कुमार राजकुमार
2धर्म का ग्रंथ धर्मग्रंथ
3रचना को करने वाला रचनाकार

तत्पुरूष समास के भेद

तत्पुरूष समास के भेद :- विभक्तियों या कारक-चिह्न (का, को, के लिए, में, से आदि) के नामों के अनुसार तत्पुरुष समास के मुख्यतः छह भेद होते हैं :-

  • (i) कर्म तत्पुरूष ( द्वितीया तत्पुरूष )
  • (ii) करण तत्पुरूष ( तृतीया तत्पुरूष )
  • (iii) संप्रदान तत्पुरूष ( चतुर्थी तत्पुरूष )
  • (iv) अपादान तत्पुरूष ( पंचमी तत्पुरूष )
  • (v) संबंध तत्पुरूष ( षष्ठी तत्पुरूष )
  • (vi) अधिकरण तत्पुरूष ( सप्तमी तत्पुरूष )

(i) कर्म तत्पुरूष ( द्वितीया तत्पुरूष )

कर्म तत्पुरूष ( द्वितीया तत्पुरूष ) :- इसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप (लुप्त या गायब) हो जाता है; अर्थात नया शब्द बनने पर ‘को’ शब्द का प्रयोग नहीं होता है।

उदाहरण जैसे :-
क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1गगनचुंबीगगन को चूमने वाला
2जेबकतराजेब को कतरने वाला
3यशप्राप्तयश को प्राप्त

(ii) करण तत्पुरूष ( तृतीया तत्पुरूष )

करण तत्पुरूष ( तृतीया तत्पुरूष ) :- इसमें करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है; अर्थात नया शब्द बनने पर ‘से’ और ‘के द्वारा’ शब्द का प्रयोग नहीं होता है।

उदाहरण जैसे :-
क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1करूणापूर्णकरूणा से पूर्ण
2सूर द्वारा रचित या सूर के द्वारा रचितसूररचित
3भयाकुलभय से आकुल

(iii) संप्रदान तत्पुरूष ( चतुर्थी तत्पुरूष )

संप्रदान तत्पुरूष ( चतुर्थी तत्पुरूष ) :- इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ लुप्त हो जाती है; अर्थात नया शब्द बनने पर ‘के लिए’ शब्द का प्रयोग नहीं होता है।

उदाहरण जैसे :-
समस्त पदसमस्त पदसमास विग्रह
1प्रयोगशालाप्रयोग के लिए शाला
2डाकगाड़ीडाक के लिए गाड़ी
3स्नानघरस्नान के लिए घर

(iv) अपादान तत्पुरूष ( पंचमी तत्पुरूष )

अपादान तत्पुरूष ( पंचमी तत्पुरूष ) :-इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ (किसी से अलग होने का भाव व्यक्त होता है) लुप्त हो जाती है; अर्थात नया शब्द बनने पर ‘से’ शब्द का प्रयोग नहीं होता है। साथ ही किसी व्यक्ति, वस्तु आदि से किसी और वस्तु, व्यक्ति, पदार्थ आदि के विभक्त, अलग या जुदा होने का भाव व्यक्त होता है।
उदाहरण जैसे :-

क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1धनहीनधन से हीन
2पथभ्रष्टपथ से भ्रष्ट
3पापमुक्तपाप से मुक्त

(v) संबंध तत्पुरूष ( षष्ठी तत्पुरूष )

संबंध तत्पुरूष ( षष्ठी तत्पुरूष ) :-इसमें संबंधकारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’,’की’ लुप्त हो जाती है; अर्थात नया शब्द बनने पर ‘का’, ‘के’,’की’ शब्द का प्रयोग नहीं होता है।

उदाहरण जैसे :-
क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1राजाज्ञा राजा की आज्ञा
2शिवालय शिव का आलय
3राजपुत्र राजा का पुत्र

(vi) अधिकरण तत्पुरूष ( सप्तमी तत्पुरूष )

अधिकरण तत्पुरूष ( सप्तमी तत्पुरूष ) :- इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘मे’, ‘पर’ लुप्त हो जाती है; अर्थात नया शब्द बनने पर ‘मे’, ‘पर’ शब्द का प्रयोग नहीं होता है।

उदाहरण जैसे :-
क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1आपबीती आप पर बीती
2पुरूषोत्तम पुरूषों में उत्तम
3शोकमग्न शोक में मग्न

3. कर्मधारय समास | Appositional Compound

कर्मधारय समास:- जिस समस्त-पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान-उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है।
सरल शब्दों में- कर्ता-तत्पुरुष को ही कर्मधारय कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- वह समास जिसमें विशेषण तथा विशेष्य अथवा उपमान तथा उपमेय का मेल हो और विग्रह करने पर दोनों खंडों में एक ही कर्त्ताकारक की विभक्ति रहे। उसे कर्मधारय समास कहते हैं।
पहचान : विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो’, ‘के समान’ आदि आते हैं ।
इसमें पूर्वपद विशेषण होता है और उत्तर पद विशेष्य,
समानाधिकरण तत्पुरुष का ही दूसरा नाम कर्मधारय है। जिस तत्पुरुष समास के समस्त होनेवाले पद समानाधिकरण हों, अर्थात विशेष्य-विशेषण-भाव को प्राप्त हों, कर्ताकारक के हों और लिंग-वचन में समान हों, वहाँ 'कर्मधारयतत्पुरुष' समास होता है।
उदाहरण जैसे :-
पीताम्बर, महादेव, कमलनयन, घनश्याम, मुखचन्द्र ।
अन्य उदाहरण जैसे :-

क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1चरणकमल कमल के समान चरण
2महादेव महान है जो देव
3चंद्रमुख चंद्र के समान मुख
4नीलगायनील (विशेषण) + गाय (विशेष्य) नीली गाय ।
5नवयुवक नव है जो युवक
6पीतांबर पीत है जो अंबर
7परमेश्र्वर परम है जो ईश्र्वर
8नीलकमल नील है जो कमल
9महात्मा महान है जो आत्मा
10कनकलताकनक की-सी लता
11प्राणप्रिय प्राणों के समान प्रिय
12देहलता देह रूपी लता
13लालमणि लाल है जो मणि
14नीलकंठ नीला है जो कंठ
15महादेव महान है जो देव
16अधमरा आधा है जो मरा
17परमानंद परम है जो आनंद

कर्मधारय समास की स्थितियाँ

कर्मधारय समास की निम्नलिखित स्थितियाँ होती हैं :-

(i).पहला पद विशेषण दूसरा विशेष्य :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. महान्, पुरुष =महापुरुष
(ii). दोनों पद विशेषण :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. भला और बुरा = भलाबुरा
उदाहरण : 2. कृष्ण और लोहित =कृष्णलोहित
उदाहरण : 3. श्वेत और रक्त =श्वेतरक्त
(iii). पहला पद विशेष्य दूसरा विशेषण :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. श्याम जो सुन्दर है =श्यामसुन्दर
(iv). दोनों पद विशेष्य :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. आम्र जो वृक्ष है =आम्रवृक्ष
(v). पहला पद उपमान :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. घन की भाँति श्याम =घनश्याम
उदाहरण : 2. व्रज के समान कठोर =वज्रकठोर
(vi). पहला पद उपमेय :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. सिंह के समान नर =नरसिंह
(vii). उपमान के बाद उपमेय :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. चन्द्र के समान मुख =चन्द्रमुख
(viii). रूपक कर्मधारय :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. मुखरूपी चन्द्र =मुखचन्द्र
(ix). पहला पद कु :
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. कुत्सित पुत्र =कुपुत्र

कर्मधारय तत्पुरुष के भेद

कर्मधारय तत्पुरुष के चार भेद है :-

  • (i)विशेषणपूर्वपद
  • (ii)विशेष्यपूर्वपद
  • (iii)विशेषणोभयपद
  • (iv)विशेष्योभयपद

(i)विशेषणपूर्वपद

इसमें पहला पद विशेषण होता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. परम ईश्वर= परमेश्वर
उदाहरण : 2. पीत अम्बर= पीताम्बर
उदाहरण : 3. प्रिय सखा= प्रियसखा
उदाहरण : 4. नीली गाय= नीलगाय

(ii)विशेष्यपूर्वपद

इसमें पहला पद विशेष्य होता है और इस प्रकार के सामासिक पद अधिकतर संस्कृत में मिलते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 2. श्रमणा (संन्यास ग्रहण की हुई )=कुमारश्रमणा।
उदाहरण : 1. कुमारी (क्वाँरी लड़की)

(iii)विशेषणोभयपद

इसमें दोनों पद विशेषण होते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. दोचार कृताकृत (किया-बेकिया, अर्थात अधूरा छोड़ दिया गया)।
उदाहरण : 2. सुनी-अनसुनी।
उदाहरण : 3. नील-पीत (नीला-पी-ला ) ।
उदाहरण : 4. लालपिला।
उदाहरण : 5. भलाबुरा।
उदाहरण : 6. कहनी-अनकहनी।
उदाहरण : 7. शीतोष्ण (ठण्डा-गरम )।

(iv)विशेष्योभयपद

इसमें दोनों पद विशेष्य होते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. वायस-दम्पति।
उदाहरण : 2. आमगाछ या आम्रवृक्ष।

कर्मधारयतत्पुरुष समास के उपभेद

कर्मधारयतत्पुरुष समास के अन्य उपभेद हैं :-

  • (i) उपमानकर्मधारय
  • (ii) उपमितकर्मधारय
  • (iii) रूपककर्मधारय

जिससे किसी की उपमा दी जाये, उसे 'उपमान' और जिसकी उपमा दी जाये, उसे 'उपमेय' कहा जाता है। घन की तरह श्याम =घनश्याम- यहाँ 'घन' उपमान है और 'श्याम' उपमेय।

(i) उपमानकर्मधारय

इसमें उपमानवाचक पद का उपमेयवाचक पद के साथ समास होता हैं। इस समास में दोनों शब्दों के बीच से 'इव' या 'जैसा' अव्यय का लोप हो जाता है और दोनों ही पद, चूँकि एक ही कर्ताविभक्ति, वचन और लिंग के होते है, इसलिए समस्त पद कर्मधारय-लक्षण का होता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. विद्युत्-जैसी चंचला =विद्युच्चंचला।

(ii) उपमितकर्मधारय

यह उपमानकर्मधारय का उल्टा होता है, अर्थात इसमें उपमेय पहला पद होता है और उपमान दूसरा। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. नर सिंह के समान =नरसिंह।
उदाहरण : 1. अधरपल्लव के समान = अधर-पल्लव

(iii) रूपककर्मधारय

जहाँ एक का दूसरे पर आरोप कर दिया जाये, वहाँ रूपककर्मधारय होगा। उपमितकर्मधारय और रूपककर्मधारय में विग्रह का यही अन्तर है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. विद्या ही है रत्न = विद्यारत्न भाष्य (व्याख्या) ही है ।
उदाहरण : 2. मुख ही है चन्द्र = मुखचन्द्र।
उदाहरण : 3. अब्धि (समुद्र)= भाष्याब्धि।

4. द्विगु समास | Numeral Compound

द्विगु समास :- जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु समास कहलाता है। इसमें समूह या समाहार का ज्ञान होता है।
अर्थात जिस शब्द का प्रथम पद (पहला शब्द) गिनती, गणना अथवा व्यक्ति, वस्तु, पदार्थ या अन्य किसी की संख्या या समूह का बोध करवाता है, तो ऐसे शब्द को द्विगु समास कहा जाता है।
सीधे शब्दों में कहा जाये तो जिस समास शब्द में गिनती (एक, दो, तीन …. सात, आठ आदि) का प्रयोग होता है वहां द्विगु समास होता है।
यह एक प्रकार का कर्मधारय समास है जहाँ विशेषण कोई संख्या है; अर्थ की दृष्टि से यह समास प्रायः समूहवाची होता है,
उदाहरण जैसे :-
तिराहा = ति (तीन) + राहा । अन्य उदाहरण – चौमासा, पंचवटी, शताब्दी, त्रिशूल, त्रिनेत्र ।
अन्य उदाहरण जैसे :-

क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1त्रिलोक तीनों लोकों का समाहार
2दोपहर दो पहरों का समूह
3सप्तसिंधु सात सिंधुओं का समूह
4पंजाब पाँच आबों (नदियों) का समूह
5पंचरत्न पाँच रत्नों का समूह
6नवरात्रि नौ रात्रियों का समूह
7तिरंगा तीन रंगों का समूह
8त्रिवेणी तीन वेणियों (नदियों) का समूह
9सतसई सात सौ दोहों का समूह
10दुअत्री दो आनों का समाहार
11पंचतंत्र पाँच तंत्रों का समूह

द्विगु समास के भेद

इसके दो भेद होते है :-

  • (i)समाहार द्विगु ।
  • (ii)उत्तरपदप्रधान द्विगु।

(i)समाहार द्विगु

समाहार का अर्थ है 'समुदाय' 'इकट्ठा होना' 'समेटना' उसे समाहार द्विगु समास कहते हैं। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. पाँचों वटों का समाहार= पंचवटी
उदाहरण : 2. तीनो भुवनों का समाहार= त्रिभुवन
उदाहरण : 3. पाँच सेरों का समाहार= पसेरी
उदाहरण : 4. तीनों लोकों का समाहार= त्रिलोक

(ii)उत्तरपदप्रधान द्विगु।

इसका दूसरा पद प्रधान रहता है और पहला पद संख्यावाची। इसमें समाहार नहीं जोड़ा जाता। उत्तरपदप्रधान द्विगु के दो प्रकार है- (A) बेटा या उत्पत्र के अर्थ में :- उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. दो माँ का- द्वैमातुर या दुमाता
उदाहरण : 2. दो सूतों के मेल का- दुसूती ।
(B) जहाँ सचमुच ही उत्तरपद पर जोर हो :- उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. पाँच प्रमाण (नाम) =पंचप्रमाण।
उदाहरण : 2. पाँच हत्थड़ (हैण्डिल)= पँचहत्थड़।

द्रष्टव्य

अनेक बहुव्रीहि समासों में भी पूर्वपद संख्यावाचक होता है। ऐसी हालत में विग्रह से ही जाना जा सकता है कि समास बहुव्रीहि है या द्विगु। यदि 'पाँच हत्थड़ है जिसमें वह =पँचहत्थड़' विग्रह करें, तो यह बहुव्रीहि है और 'पाँच हत्थड़' विग्रह करें, तो द्विगु।

5. द्वंद्व समास | Copulative Compound

द्वंद्व समास :- जिस समस्त-पद (पूर्ण शब्द) के दोनों पद प्रधान (प्रथम पद व उत्तर पद) हों तथा शब्द का विग्रह करने पर ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवंं’ लगता हो, तो ऐसे शब्द को द्वंद्व समास कहते हैं। पहचान : दोनों पदों के बीच प्रायः ‘योजक चिह्न (-)’ का प्रयोग होता है, पर हमेशा नहीं। साथ ही द्वंद्व समास में प्रथम पद व दूसरा पद एक दूसरे के विरोधाभाषी या कहा जाये कि विलोम होते हैं, जैसे की नाम से ही प्रतीत होता है, द्वंद्व अर्थात दो शब्द, गुण, पदार्थ या स्थितियाँ जो परस्पर विरोधी हों। अर्थात इस समास में ऐसे प्रथम पद और उत्तर पद का प्रयोग होता है जो एक दूसरे का विरोध करते हैं।

इसमें दोनों पद प्रधान होते हैं, जैसे – माँ-बाप, भाई-बहन, घी-शक्कर । इसके विग्रह में जोड़ने वाले और को लाया जाता है , जैसे - माँ और बाप, घी और शक्कर ।
उदाहरण जैसे :-

क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1ठंडा-गरम ठंडा या गरम
2देवासुर देव और असुर
3पाप-पुण्य पाप और पुण्य
4नदी-नाले नदी और नाले
5दाल-चावलदाल और चावल
6भाई-बहन भाई और बहन
7माता-पिता माता और पिता
8आना-जानाआना और जाना
9राजा-रंक राजा और रंक
10रात-दिन रात और दिन
11सुख-दुख सुख और दुख
12ऊपर-नीचे ऊपर और नीचे
13गंगा-यमुनागंगा और यमुना
14दूध-दही दूध और दही
15आयात-निर्यात आयात और निर्यात
16देश-विदेश देश और विदेश

5. द्वंद्व समास की पहचान

द्वंद्व समास की पहचान :- दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न | Hyphen (-) का प्रयोग होता है। द्वन्द्व समास में सभी पद प्रधान होते है। द्वन्द्व और तत्पुरुष से बने पदों का लिंग अन्तिम शब्द के अनुसार होता है।

द्वन्द्व समास के भेद

द्वन्द्व समास के तीन भेद है :-

  • (i). इतरेतर द्वन्द्व
  • (ii). समाहार द्वन्द्व
  • (iii). वैकल्पिक द्वन्द्व

(i). इतरेतर द्वन्द्व

वह द्वन्द्व, जिसमें 'और' से सभी पद जुड़े हुए हो और पृथक् अस्तित्व रखते हों, 'इतरेतर द्वन्द्व' कहलता है।
इतरेतर द्वन्द्व समास से बने पद हमेशा बहुवचन में प्रयुक्त होते है; क्योंकि वे दो या दो से अधिक पदों के मेल से बने होते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. माँ और बाप =माँ-बाप।
उदाहरण : 2. बेटा और बेटी =बेटा-बेटी इत्यादि।।
उदाहरण : 3. राम और कृष्ण =राम-कृष्ण।
उदाहरण : 4. ऋषि और मुनि =ऋषि-मुनि।
उदाहरण : 5. गाय और बैल =गाय-बैल।
उदाहरण : 6. भाई और बहन =भाई-बहन।

यहाँ ध्यान रखना चाहिए कि इतरेतर द्वन्द्व में दोनों पद न केवल प्रधान होते है, बल्कि अपना अलग-अलग अस्तित्व भी रखते है।

(ii). समाहार द्वन्द्व

समाहार का अर्थ है समष्टि या समूह। जब द्वन्द्व समास के दोनों पद और समुच्चयबोधक से जुड़े होने पर भी पृथक-पृथक अस्तित्व न रखें, बल्कि समूह का बोध करायें, तब वह समाहार द्वन्द्व कहलाता है।
समाहार द्वन्द्व में दोनों पदों के अतिरिक्त अन्य पद भी छिपे रहते है और अपने अर्थ का बोध अप्रत्यक्ष रूप से कराते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. दालरोटी=दाल और रोटी (अर्थात भोजन के सभी मुख्य पदार्थ)।
उदाहरण : 2. हाथपाँव =हाथ और पाँव (अर्थात हाथ और पाँव तथा शरीर के दूसरे अंग भी )।
उदाहरण : 3. आहारनिद्रा =आहार और निद्रा (केवल आहार और निद्रा ही नहीं, बल्कि इसी तरह की और बातें भी)।

इसी तरह नोन-तेल, कुरता-टोपी, साँप-बिच्छू, खाना-पीना इत्यादि।
कभी-कभी विपरीत अर्थवाले या सदा विरोध रखनेवाले पदों का भी योग हो जाता है।
उदाहरण जैसे :-
चढ़ा-ऊपरी, लेन-देन, आगा-पीछा, चूहा-बिल्ली इत्यादि।

जब दो विशेषण-पदों का संज्ञा के अर्थ में समास हो, तो समाहार द्वन्द्व होता है। उदाहरण जैसे :-
लंगड़ा-लूला, भूखा-प्यास, अन्धा-बहरा इत्यादि।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. भूखे-प्यासे को निराश नहीं करना चाहिए ।
उदाहरण : 2. इस गाँव में बहुत-से अन्धे-बहरे है।
उदाहरण : 3. लँगड़े-लूले यह काम नहीं कर सकते ।

द्रष्टव्य :- यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि जब दोनों पद विशेषण हों और विशेषण के ही अर्थ में आयें तब वहाँ द्वन्द्व समास नहीं होता, वहाँ कर्मधारय समास हो जाता है। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. भूखा-प्यासा लड़का सो गया।
उदाहरण : 2. इस गाँव में बहुत-से लोग अन्धे-बहरे हैं।
उदाहरण : 3. लँगड़ा-लूला आदमी यह काम नहीं कर सकता ।

इन प्रयोगों में 'लँगड़ा-लूला', 'भूखा-प्यासा' और 'अन्धा-बहरा' द्वन्द्व समास नहीं हैं।

(iii). वैकल्पिक द्वन्द्व

जिस द्वन्द्व समास में दो पदों के बीच 'या', 'अथवा' आदि विकल्पसूचक अव्यय छिपे हों, उसे वैकल्पिक द्वन्द्व कहते है। इस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय 'वा', 'या', 'अथवा' का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. सत्य या असत्य= सत्यासत्य
उदाहरण : 2. छोटा या बड़ा= छोटा-बड़ा
उदाहरण : 3. धर्म या अधर्म= धर्माधर्म

6. बहुव्रीहि समास | Attributive Compound

बहुव्रीहि समास :-जिस समस्त-पद (पूर्ण शब्द) में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिलकर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, उसमें बहुव्रीहि समास होता है।
अर्थात ऐसा भी कहा जा सकता है कि जब कोई दो शब्द मिलकर ऐसे शब्द का निर्माण करते हैं जो कि उन शब्दों के बारे में न बताकर, जिनसे कि नए शब्द का निर्माण हुआ है, किसी और ही व्यक्ति या वस्तु विशेष की विशेषता को बताते या दर्शाते हों, तो वहाँ पर बहुव्रीहि समास होता है।

इस समास में न तो उत्तर पद प्रधान होता है और न ही पूर्वपद प्रधान होता है । यहाँ दोनों गौण (उत्तर पद और पूर्वपद) एक तीसरे प्रधान के संबंध में कहते हैं, जो संदर्भ से प्रकट होता है ।
जैसे – पीताम्बर = पीत+अम्बर (पीला कपडा), लेकिन संदर्भ से यह कृष्ण के लिए प्रयुक्त हुआ है – पीला है कपडा जिसका वह (कृष्ण) । यहाँ दोनों पद गौण हैं, प्रधान तीसरा पद कृष्ण है ।
अन्य उदाहरण – नीलकंठ = शिवजी, दशानन = रावण, त्रिलोचन = शिवजी, चतुर्भुज = विष्णु ।

समास में आये पदों को छोड़कर जब किसी अन्य पदार्थ की प्रधानता हो, तब उसे बहुव्रीहि समास कहते है।
दूसरे शब्दों में : - जिस समास में पूर्वपद तथा उत्तरपद- दोनों में से कोई भी पद प्रधान न होकर कोई अन्य पद ही प्रधान हो, वह बहुव्रीहि समास कहलाता है।
उदाहरण जैसे :-
दशानन- दस मुहवाला- रावण।

जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते है, उसमें बहुव्रीहि समास होता है। 'नीलकंठ', नीला है कंठ जिसका अर्थात शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद 'शिव' का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है।
इस समास के समासगत पदों में कोई भी प्रधान नहीं होता, बल्कि पूरा समस्तपद ही किसी अन्य पद का विशेषण होता है।
नोट : कर्मधारय और बहुब्रीहि में एक से पद होते हैं, किन्तु भेद यह है कि यदि उत्तर पद प्रधान है तो कर्मधारय, यदि कोई पद प्रधान नहीं है अर्थात दोनों गौण हैं तो बहुब्रीहि ।
उदाहरण जैसे :-

क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1नीलकंठ नीला है कंठ जिसका (शिव)
2लंबोदर लंबा है उदर जिसका (गणेश)
3चौलड़ी चार हैं लड़िया जिसमें (माला)
4दशानन दस हैं आनन जिसके (रावण)
5अनहोनी न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना)
6निशाचर निशा में विचरण करने वाला (राक्षस)
7प्रधानमंत्री मंत्रियो में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री)
8पंकज (पंक में पैदा हो जो (कमल)
9महावीर महान वीर है जो अर्थात हनुमान
10चौलड़ी चार है लड़ियाँ जिसमे (माला)
11त्रिलोचन तीन लोचन हैं जिसके अर्थात शिव
12विषधर (विष को धारण करने वाला (सर्प)
13मृगनयनी मृग के समान नयन हैं जिसके अर्थात सुंदर स्त्री
14सत्यप्रिय सत्य प्रिय है जिसे अर्थात विशेष व्यक्ति

तत्पुरुष और बहुव्रीहि में अन्तर

तत्पुरुष और बहुव्रीहि में यह भेद है कि तत्पुरुष में प्रथम पद द्वितीय पद का विशेषण होता है, जबकि बहुव्रीहि में प्रथम और द्वितीय दोनों पद मिलकर अपने से अलग किसी तीसरे के विशेषण होते है। जैसे- 'पीत अम्बर =पीताम्बर (पीला कपड़ा )' कर्मधारय तत्पुरुष है तो 'पीत है अम्बर जिसका वह- पीताम्बर (विष्णु)' बहुव्रीहि। इस प्रकार, यह विग्रह के अन्तर से ही समझा जा सकता है कि कौन तत्पुरुष है और कौन बहुव्रीहि। विग्रह के अन्तर होने से समास का और उसके साथ ही अर्थ का भी अन्तर हो जाता है। 'पीताम्बर' का तत्पुरुष में विग्रह करने पर 'पीला कपड़ा' और बहुव्रीहि में विग्रह करने पर 'विष्णु' अर्थ होता है।

‘नीलकंठ’, नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव। यहाँ पर दोनों पदों ने मिलकर एक तीसरे पद ‘शिव’ का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है। ‘दशानन’, दस हैं आनन जिसके; अर्थात दस हैं सिर (आनन) जिसके अर्थात् रावण।

बहुव्रीहि समास के भेद

बहुव्रीहि समास के चार भेद है-

  • (i). समानाधिकरण बहुव्रीहि
  • (ii). व्यधिकरणब हुव्रीहि
  • (iii). तुल्ययोग बहुव्रीहि
  • (iv). व्यतिहार बहुव्रीहि
  • (v). प्रादिबहुव्रीहि

(i). समानाधिकरण बहुव्रीहि

समें सभी पद प्रथमा, अर्थात कर्ताकारक की विभक्ति के होते है; किन्तु समस्तपद द्वारा जो अन्य उक्त होता है, वह कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण आदि विभक्ति-रूपों में भी उक्त हो सकता है। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. दत्त है भोजन जिसके लिए =दत्तभोजन (सम्प्रदान में उक्त)।
उदाहरण : 2. निर्गत है धन जिससे =निर्धन (अपादान में उक्त)।
उदाहरण : 3. प्राप्त है उदक जिसको =प्राप्तोदक (कर्म में उक्त)।
उदाहरण : 4. जीती गयी इन्द्रियाँ है जिसके द्वारा =जितेन्द्रिय (करण में उक्त)।
उदाहरण : 5. चार है लड़ियाँ जिसमें =चौलड़ी।
उदाहरण : 6. सात है खण्ड जिसमें =सतखण्डा (अधिकरण में उक्त)।
उदाहरण : 7. पीत है अम्बर जिसका =पीताम्बर।
उदाहरण : 8. नेक है नाम जिसका =नेकनाम (सम्बन्ध में उक्त)।
उदाहरण : 9. मीठी है बोली जिसकी =मिठबोला।

(ii). व्यधिकरणब हुव्रीहि

समानाधिकरण में जहाँ दोनों पद प्रथमा या कर्ताकारक की विभक्ति के होते है, वहाँ पहला पद तो प्रथमा विभक्ति या कर्ताकारक की विभक्ति के रूप का ही होता है, जबकि बादवाला पद सम्बन्ध या अधिकरण कारक का हुआ करता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. वीणा है पाणि में जिसके =वीणापाणि।
उदाहरण : 2. शूल है पाणि (हाथ) में जिसके =शूलपाणि।

(iii). तुल्ययोग बहुव्रीहि

जिसमें पहला पद 'सह' हो, वह तुल्ययोगबहुव्रीहि या सहबहुव्रीहि कहलाता है। 'सह' का अर्थ है 'साथ' और समास होने पर 'सह' की जगह केवल 'स' रह जाता है। इस समास में यह ध्यान देने की बात है कि विग्रह करते समय जो 'सह' (साथ) बादवाला या दूसरा शब्द प्रतीत होता है, वह समास में पहला हो जाता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. जो देह के साथ है, वह सदेह।
उदाहरण : 2. जो बल के साथ है, वह=सबल।
उदाहरण : 3. जो चेत (होश) के साथ है, वह =सचेत।
उदाहरण : 4. जो परिवार के साथ है, वह सपरिवार।

(iv). व्यतिहार बहुव्रीहि

जिससे घात-प्रतिघात सूचित हो, उसे व्यतिहारबहुव्रीहि कहा जाता है।
इस समास के विग्रह से यह प्रतीत होता है कि 'इस चीज से और इस या उस चीज से जो लड़ाई हुई'।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. बातों-बातों से जो लड़ाई हुई =बाताबाती।
उदाहरण : 2. मुक्के-मुक्के से जो लड़ाई हुई =मुक्का-मुक्की।
उदाहरण : 3. घूँसे-घूँसे से जो लड़ाई हुई =घूँसाघूँसी ।

(v). प्रादिबहुव्रीहि

जिस बहुव्रीहि का पूर्वपद उपसर्ग हो, वह प्रादिबहुव्रीहि कहलाता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. नहीं है रहम जिसमें = बेरहम।
उदाहरण : 2. नहीं है जन जहाँ = निर्जन।
उदाहरण : 3. कुत्सित है रूप जिसका = कुरूप।

तत्पुरुष के भेदों में भी 'प्रादि' एक भेद है, किन्तु उसके दोनों पदों का विग्रह विशेषण-विशेष्य-पदों की तरह होगा, न कि बहुव्रीहि के ढंग पर, अन्य पद की प्रधानता की तरह। जैसे- अति वृष्टि= अतिवृष्टि (प्रादितत्पुरुष) ।

द्रष्टव्य

द्रष्टव्य- (i)बहुव्रीहि के समस्त पद में दूसरा पद 'धर्म' या 'धनु' हो, तो वह आकारान्त हो जाता है। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. सुन्दर है धर्म जिसका = सुधर्मा ।
उदाहरण : 2. आलोक ही है धनु जिसका = आलोकधन्वा ।
उदाहरण : 3. प्रिय है धर्म जिसका = प्रियधर्मा ।

द्रष्टव्य- (ii)सकारान्त में विकल्प से 'आ' और 'क' किन्तु ईकारान्त, उकारान्त और ऋकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्र्चितरूप से 'क' लग जाता है। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. ईश्र्वर है कर्ता जिसका = ईश्र्वरकर्तृक।
उदाहरण : 1. उदार है मन जिसका = उदारमनस, उदारमना या उदारमनस्क।
उदाहरण : 1. अन्य में है मन जिसका = अन्यमना या अन्यमनस्क।
उदाहरण : 1. बिना है पति के जो = विप्तीक ।
उदाहरण : 1. साथ है पति जिसके; सप्तीक।

बहुव्रीहि समास की विशेषताएँ

बहुव्रीहि समास की निम्नलिखित विशेषताएँ है

  • (i). यह दो या दो से अधिक पदों का समास होता है।
  • (ii). इसका विग्रह शब्दात्मक या पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है।
  • (iii). इसमें अधिकतर पूर्वपद कर्ता कारक का होता है या विशेषण।
  • (iv). इस समास से बने पद विशेषण होते है। अतः उनका लिंग विशेष्य के अनुसार होता है।
  • (v). इसमें अन्य पदार्थ प्रधान होता है।

बहुव्रीहि समास-संबंधी विशेष बातें

(i) यदि बहुव्रीहि समास के समस्तपद में दूसरा पद 'धर्म' या 'धनु' हो तो वह आकारान्त हो जाता है। उदाहरण जैसे :-
आलोक ही है धनु जिसका वह= आलोकधन्वा
(ii) सकारान्त में विकल्प से 'आ' और 'क' किन्तु ईकारान्त, ऊकारान्त और ॠकारान्त समासान्त पदों के अन्त में निश्चित रूप से 'क' लग जाता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. अन्य में है मन जिसका वह= अन्यमनस्क
उदाहरण : 2. साथ है पत्नी जिसके वह= सपत्नीक
उदाहरण : 3. उदार है मन जिसका वह= उदारमनस्
(iii) बहुव्रीहि समास में दो से ज्यादा पद भी होते हैं।
(iv) इस समास में अधिकतर पूर्वपद कर्त्ता कारक का होता है या विशेषण।
(v) इसका विग्रह पदात्मक न होकर वाक्यात्मक होता है। यानी पदों के क्रम को व्यवस्थित किया जाय तो एक सार्थक वाक्य बन जाता है।
उदाहरण जैसे :-
लंबा है उदर जिसका वह= लंबोदर
वह, जिसका उदर लम्बा है।

7. नञ समास | Nay Samaas

नञ समास :-
जिस समास में पहला पद निषेधात्मक हो उसे नञ तत्पुरुष समास कहते हैं। इसमे नहीं का बोध होता है।
इस समास का पहला पद 'नञ' (अर्थात नकारात्मक) होता है। समास में यह नञ 'अन, अ,' रूप में पाया जाता है। कभी-कभी यह 'न' रूप में भी पाया जाता है। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. न धर्म=अधर्म
उदाहरण : 1. (संस्कृत) न भाव=अभाव
उदाहरण : 1. न योग्य= अयोग्य
उदाहरण : 1. न न्याय= अन्याय


क्रमसमस्त पदसमास विग्रह
1अनुचित न उचित
2अनाचार न आचार
3समस्त-पद विग्रह
4अन्याय न न्याय
5अनदेखा न देखा हुआ
6नालायक नहीं लायक
7अनभिज्ञ न अभिज्ञ
8नास्तिक न आस्तिक
9अचल न चल

कृप्या ध्यान दें !!

कई बार ऐसा होता है कि परीक्षा में ऐसे शब्द प्रश्न में दिए जाते हैं, जो दो समास दर्शाते हैं,
उदाहरण जैसे :-
नीलकंठ : - नीला है कंठ जिसका (अर्थात शिव) — बहुव्रीहि समास
नीलकंठ : - नीला है जो कंठ — कर्मधारय समास
दशानन : - दस हैं आनन जिसके (अर्थात रावण) — बहुव्रीहि समास
दशानन : - दस आननों का समूह — द्विगु समास
अब ऐसी स्थिति में ध्यान दें, कि अगर समास विग्रह दिया गया है तो ज्ञात करें कि वह किस समास के नियमों का सर्वाधिक पालन कर रहा है, जिस समास के नियमों का सर्वाधिक पालन किया गया होगा वहां वही समास होगा।


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