Vakya Vichar | वाक्य-विचार

हिन्दी व्याकरण : वाक्य-विचार | Vakya Vichar



वाक्य-विचार | Syntax

भाषा की न्यूनतम इकाई वाक्य, वाक्य की न्यूनतम इकाई शब्द और शब्द की न्यूनतम इकाई वर्ण (ध्वनि) है। वर्ण विचार , शब्द विचार के साथ-साथ वाक्य विचार का भी हिन्दी व्याकरण में बहुत महत्व है। वाक्य शब्दों का समूह होता है जिस से सार्थक अर्थ मिलता हो। जब किसी से बात करनी हो तो वाक्य की आवश्यकता पड़ती है हालांकि वाक्य के प्रत्येक शब्द का अपना अर्थ होता है। वाक्य में आयें प्रत्येक शब्द मिलकर पूरा अर्थ प्रकट करता हैं।
वाक्य विचार हिंदी व्याकरण का तीसरा खंड है जिसमें वाक्य की परिभाषा, भेद-उपभेद, संरचना आदि से संबंधित नियमों पर विचार किया जाता है। मनुष्य अपने भावों या विचारों को वाक्य में ही प्रकट करता है। वाक्य सार्थक शब्दों के व्यवस्थित और क्रमबद्ध समूह से बनते हैं, जो किसी विचार को पूर्ण रूप से प्रकट करते हैं। अर्थ प्रकट करने वाले सार्थक शब्दों के व्यवस्थित समूह को वाक्य कहते हैं; जैसे-ओजस्व कमरे में टी.वी. देख रहा है। रजतअमन, तुम कहाँ जा रहे हो? एक वाक्य में साधारण रूप में कर्ता और क्रिया का होना आवश्यक है।

वाक्य की परिभाषा

1. शब्दों के समूह को जिसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है, वाक्य कहते हैं।
2. शब्दों का ऐसा समूह जो विचारों को पूर्ण रूप से व्यक्त करता हो 'वाक्य' कहलाता हैै।
3. वाक्य भाषा की सबसे छोटी इकाई है , परन्तु विचारों एवं भावों को पूर्ण रूप से व्यक्त करती वाक्य कहलाती है।
4. शब्दों का समूह जो क्रम के अनुसार सजा हो और पूर्ण अर्थ प्रकट करता हो 'वाक्य' कहलाता हैै।
5.दो या दो से अधिक शब्दों के सार्थक समूह को वाक्य कहते हैं।

शब्दकोशीय अर्थ

वह पद / शब्द समूह जिससे श्रोता को वक्ता के अभिप्राय का बोध हो।

वाक्य के अंग

वाक्य के दो अनिवार्य तत्त्व /अंग होते हैं।

  • 1. उद्देश्य | Subject
  • 2. विधेय | Predicate

जिसके बारे में बात की जाय उसे उद्देश्य कहते हैं और जो बात की जाय उसे विधेय कहते हैं। उदाहरण के लिए मोहन प्रयाग में रहता है। इसमें उद्देश्य- मोहन है और विधेय है- प्रयाग में रहता है। वाक्य भेद दो प्रकार से किए जा सकते हँ-

1. उद्देश्य

उद्देश्य – वाक्य में जिसके बारे में कुछ कहा जाता है, उसे उद्देश्य कहते हैं।
वाक्य का वह भाग है, जिसमें किसी व्यक्ति या वस्तु के बारे में कुछ कहा जाए, उसे उद्देश्य कहते हैं।
सरल शब्दों में- वाक्य में जिसके विषय में कुछ कहा जाये उसे उद्देश्य कहते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. पक्षी डाल पर बैठा है।
उदाहरण : 2. राजा खाता है।
पूनम किताब पढ़ती है। सचिन दौड़ता है। इन वाक्यों में राजा, पक्षी, पूनम और सचिन उद्देश्य हैं।

उद्देश्य के रूप में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया-विशेषण क्रियाद्योतक और वाक्यांश आदि आते हैं।

उदाहरण जैसे :-

उदाहरण : 1. संज्ञा :- मोहन गेंद खेलता है।
उदाहरण : 2. सर्वनाम:-वह घर जाता है।
उदाहरण : 3. विशेषण:-बुद्धिमान सदा सच बोलते हैं।
उदाहरण : 4. क्रिया-विशेषण :-पीछे मत देखो।
उदाहरण : 5. क्रियार्थक संज्ञा :-तैरना एक अच्छा व्यायाम है।
उदाहरण : 6. वाक्यांश :-भाग्य के भरोसे बैठे रहना कायरों का काम है।
उदाहरण : 7. कृदन्त :- लकड़हारा लकड़ी बेचता है।

(i). उद्देश्य के भाग

उद्देश्य के दो भाग होते है :-
(i) कर्ता
(ii) कर्ता का विशेषण या कर्ता से संबंधित शब्द।

उद्देश्य का विस्तार

जब उद्देश्य के साथ उसकी विशेषता बताने वाले शब्द जुड़ जाते हैं, अब वे शब्द उद्देश्य का विस्तार कहलाते हैं।
उद्देश्य की विशेषता प्रकट करनेवाले शब्द या शब्द-समूह को उद्देश्य का विस्तार कहते हैं। उद्देश्य के विस्तारक शब्द विशेषण, सम्बन्धवाचक, समानाधिकरण, क्रियाद्योतक और वाक्यांश आदि होते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. लड़की(उद्देश्य) नाच रही है।
उदाहरण : 2. एक सुंदर(उद्देश्य का विस्तार) लड़की हँस रही है।

अन्य उदाहरण जैसे :-

उदाहरण : 1. विशेषण :- 'दुष्ट' लड़के ऊधम मचाते हैं।
उदाहरण : 2. सम्बन्धकारक :- 'मोहन का' घोड़ा घास खाता है।
उदाहरण : 3. विशेषणवत्प्रयुक्त शब्द :- 'सोये हुए' शेर को जगाना अच्छा नहीं होता।
उदाहरण : 4. क्रियाद्योतक :- 'खाया मुँह और नहाया बदन' छिपता नहीं है।
उदाहरण : 5. वाक्यांश :- 'दिन भर का थका हुआ' लड़का लेटते ही सो गया।
उदाहरण : 6. प्रश्न से :- 'कैसा' काम होता है ?
उदाहरण : 7. सम्बोधन :- 'हे राम!' तुम क्या कर रहे हो ?

2. विधेय

विधेय – उद्देश्य के विषय में जो कुछ कहा जाए, उसे विधेय कहते हैं।
वाक्य के कर्ता (उद्देश्य) को अलग करने के बाद वाक्य में जो कुछ भी शेष रह जाता है, वह विधेय कहलाता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. पक्षी डाल पर बैठा है।
उदाहरण : 2. राजा खाता है।
उदाहरण : 3. पूनम किताब पढ़ती है। इन वाक्यों में खाता है, डाल पर बैठा है और पढ़ती है , विधेय है।

विधेय के भाग


विधेय के छः भाग होते है :-
(i) क्रिया
(ii) क्रिया के विशेषण
(iii) कर्म
(iv) कर्म के विशेषण या कर्म से संबंधित शब्द
(v) पूरक
(vi)पूरक के विशेषण।

विधेय के प्रकार


विधेय दो प्रकार के होते हैं:-
(i) साधारण विधेय
(ii) जटिल विधेय

(i) साधारण विधेय


(i) साधारण विधेय :- साधारण विधेय में केवल एक क्रिया होती है। जैसे- राम पढ़ता हैं। वह लिखती है।

(ii) जटिल विधेय


(ii) जटिल विधेय :- जब विधेय के साथ पूरक शब्द प्रयुक्त होते हैं, तो विधेय को जटिल विधेय कहते हैं।

विधेय का विस्तार

कभी विधेय अकेला आता है, तो कभी क्रियाविशेषण, कर्म आदि के साथ।इस प्रकार जो शब्द क्रिया के कर्म या विशेषण होते हैं, वे विधेय का विस्तार कहलाते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. मोर नाच रहा है(विधेय)
उदाहरण : 2. मोर पंख फैलाकर(विधेय का विस्तार ) नाच रहा है।
उदाहरण : 3. लंबे-लंबे बालों वाली लड़की 'अभी-अभी एक बच्चे के साथ दौड़ते हुए उधर गई' ।
इन वाक्यों में रेखांकित अंश विधेय है। दूसरे वाक्यों में विधेय का विस्तार किया गया है।

विधेय की विशेषता प्रकट करनेवाले शब्द-समूह को विधेय का विस्तार कहते हैं। विधेय का विस्तार निम्नलिखित प्रकार से होते हैं :-
उदाहरण : 1. कर्म द्वारा :- वह 'रामायण' पढ़ता है।
उदाहरण : 2. विशेषण द्वारा :- वह 'प्रसन्न' हो गया।
उदाहरण : 3. क्रिया-विशेषण द्वारा :- मोहन 'धीरे-धीरे' पढ़ता है।
उदाहरण : 4. सम्बन्धसूचक द्वारा :-नाव यात्रियों 'सहित' डूब गया।
उदाहरण : 5. क्रियाद्योतक द्वारा :-वह हाथ में 'गेंद लिए' जाता है।
उदाहरण : 6. क्रियाविशेषणवत् प्रयुक्त शब्द द्वारा :- वह 'अच्छा' गाता है।
उदाहरण : 7. पूर्वकालिक क्रिया द्वारा :- मोहन 'पढ़कर' सो गया।
उदाहरण : 8. पद वाक्यांश द्वारा :-'मोहन भोजन करने के बाद ही' सो गया।

वाक्य के भेद

वाक्य के निम्नलिखित दो भेद होते हैं।

  • 1. रचना के आधार पर वाक्य के भेद
  • 2. अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद
  • 3. क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद

1. रचना के आधार पर वाक्य के भेद

  • (i). साधरण वाक्य या सरल वाक्य | Simple Sentence
  • (ii). संयुक्त वाक्य | Compound Sentence
  • (iii). मिश्रित वाक्य | Complex Sentence

(i). साधरण वाक्य या सरल वाक्य | Simple Sentence

सरल वाक्य :– जिस वाक्य में एक उद्देश्य और एक विधेय होता है, उसे सरल वाक्य कहते हैं ।
जिन वाक्य में एक ही क्रिया होती है, और एक कर्ता होता है, वे साधारण वाक्य कहलाते है।
जिन वाक्यों में केवल एक ही उद्देश्य और एक ही विधेय होता है, उन्हें साधारण वाक्य या सरल वाक्य कहते हैं।
इसमें एक 'उद्देश्य' और एक 'विधेय' रहते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. पिता जी अखबार पढ़ रहे हैं।
उदाहरण : 2. अंशु पढ़ रही है।
उदाहरण : 3. बिजली चमकती है
उदाहरण : 4. पानी बरसा

इन वाक्यों में एक-एक उद्देश्य, अर्थात कर्ता और विधेय, अर्थात क्रिया है। अतः, ये साधारण या सरल वाक्य हैं।

(ii). संयुक्त वाक्य | Compound Sentence

जिस वाक्य में दो या दो से अधिक उपवाक्य मिले हों, परन्तु सभी वाक्य प्रधान हो तो ऐसे वाक्य को संयुक्त वाक्य कहते है।
जब दो या दो अधिक उपवाक्य समुच्यबोधक अव्यय से जुड़े हुए हो उसे संयुक्त वाक्य कहते है।
जिन वाक्यों में दो-या दो से अधिक सरल वाक्य समुच्चयबोधक अव्ययों से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है
सरल शब्दों में- जिस वाक्य में साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का मेल संयोजक अवयवों द्वारा होता है, उसे संयुक्त वाक्य कहते हैं।
दूसरे शब्दो में- जिन वाक्यों में दो या दो से अधिक सरल वाक्य योजकों (और, एवं, तथा, या, अथवा, इसलिए, अतः, फिर भी, तो, नहीं तो, किन्तु, परन्तु, लेकिन, पर आदि) से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. प्रिय बोलो पर असत्य नहीं।
उदाहरण : 2. उसने बहुत परिश्रम किया किन्तु सफलता नहीं मिली।
उदाहरण : 3. वह सुबह गया और शाम को लौट आया।
उदाहरण : 4. लता खा रही है और ममता पढ़ रही है।
उदाहरण : 5. मैं जा रहा हूँ और तुम आ रहे हो।

संयुक्त वाक्य में निम्नलिखित बातें का होना आवश्यक है।

  • संयुक्त वाक्य मैं सरल वाक्य का स्वतंत्र प्रयोग हो सकता है।
  • दोनों वाक्य में आपस में आश्रित ना हो कर एक दूसरे के पूरक होते है।
  • संयुक्त वाक्य में वाक्यों की रचना एक सामान होनी चाहिए , अलग - अलग संरचना से संयुक्त वाक्य नहीं बनता।

संयुक्त वाक्य उस वाक्य-समूह को कहते हैं, जिसमें दो या दो से अधिक सरल वाक्य अथवा मिश्र वाक्य अव्ययों द्वारा संयुक्त हों। इस प्रकार के वाक्य लम्बे और आपस में उलझे होते हैं। जैसे- 'मैं रोटी खाकर लेटा कि पेट में दर्द होने लगा, और दर्द इतना बढ़ा कि तुरन्त डॉक्टर को बुलाना पड़ा।' इस लम्बे वाक्य में संयोजक 'और' है, जिसके द्वारा दो मिश्र वाक्यों को मिलाकर संयुक्त वाक्य बनाया गया।

इसी प्रकार 'मैं आया और वह गया' इस वाक्य में दो सरल वाक्यों को जोड़नेवाला संयोजक 'और' है। यहाँ यह याद रखने की बात है कि संयुक्त वाक्यों में प्रत्येक वाक्य अपनी स्वतन्त्र सत्ता बनाये रखता है, वह एक-दूसरे पर आश्रित नहीं होता, केवल संयोजक अव्यय उन स्वतन्त्र वाक्यों को मिलाते हैं। इन मुख्य और स्वतन्त्र वाक्यों को व्याकरण में 'समानाधिकरण' उपवाक्य भी कहते हैं।

संयुक्त वाक्य के प्रभेद

संयुक्त वाक्य के निम्नलिखित प्रभेद होते है।
1. संयोजक संयुक्त वाक्य
2. विभाजक संयुक्त वाक्य
3. विरोधसूचक संयुक्त वाक्य
4. परिमाणवाचक संयुक्त वाक्य

1. संयोजक संयुक्त वाक्य

जब वाक्यों को "तथा ", "और", "एवं" आदि समुच्यबोधक द्वारा जोड़ा जाता है तो उसे संयोजक संयुक्त वाक्य कहते है। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. वो पास हो गई एवं तुम फैल हो गए।
उदाहरण : 2. लता शिक्षिका है और उसका पति डॉक्टर।

2. विभाजक संयुक्त वाक्य

जिन दो वाक्यों के बीच विकल्प सूचक समुच्यबोधक शब्द का प्रयोग होता है उसे विभाजक संयुक्त वाक्य कहते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. वर्षा नहीं होती तो मैं आ जाता।
उदाहरण : 2. तुम देखते जाओ मैं बताता रहूँगा।

3. विरोधसूचक संयुक्त वाक्य

जो वाक्य समुच्य सूचक से बना होता है और विरोध की स्थिति प्रकट करता है विरोधसूचक वाक्य कहते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. वो पास हो जाता परन्तु मेहनत ही नहीं किया।

4. परिमाणवाचक संयुक्त वाक्य

जब संयुक्त वाक्य कार्य -कारण - भाव से समुच्यबोधक द्वारा जुड़े हो परिमाण वाची संयुक्त वाक्य कहते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. ऑफिस को बंद करना है , अतः कार्य को जल्दी सम्पन्न करे।

(iii). मिश्रित वाक्य | Complex Sentence

जिस वाक्य में एक से अधिक वाक्य मिले हों किन्तु एक प्रधान उपवाक्य तथा शेष आश्रित उपवाक्य हों, मिश्रित वाक्य कहलाता है।
सरल शब्दों में: - जिस वाक्य में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक या अधिक समापिका क्रियाएँ हों, उसे 'मिश्रित वाक्य' कहते हैं।
जब दो ऐसे वाक्य मिलें जिनमें एक मुख्य उपवाक्य (Principal Clause) तथा एक गौण अथवा आश्रित उपवाक्य (Subordinate Clause) हो, तब मिश्र वाक्य बनता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. मेरी कलम मिल गई जो खो गई थी।
उदाहरण : 2. रामु ने कहा था कि वो मेरा घर आएगा।
उदाहरण : 3. मैं जानता हूँ कि तुम्हारे अक्षर अच्छे नहीं बनते है।
उदाहरण : 4. मेरा दृढ़ विश्वास है कि भारत जीतेगा।
उदाहरण : 5. ज्यों ही उसने दवा पी, वह सो गया।
उदाहरण : 6. सफल वही होता है जो परिश्रम करता है।
उदाहरण : 7. ये वही लड़का है , जिसने मेरी घड़ी चुराई थी।
उदाहरण : 8. यदि परिश्रम करोगे तो, उत्तीर्ण हो जाओगे।
उदाहरण : 9. राजेश को पुरुष्कार मिला क्योंकि वह कक्षा में प्रथम आया था।

2. अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद

  • (i). विधानवाचक या कथनात्मक | Assertive Sentence
  • (ii). निषेधवाचक या नकारात्मक | Negative Semtence
  • (iii) इच्छावाचक | IIIative Sentence
  • (iv). प्रश्नवाचक | Interrogative Sentence
  • (v). आज्ञावाचक या विधिवाचक | Imperative Sentence
  • (vi). संकेतवाचक | Conditional Sentence
  • (vii). विस्मयसूचक या विस्मयादिबोधक | Exclamatory Sentence
  • (viii). संदेहवाचक | Sentence indicating Doubt

(i). विधानवाचक या कथनात्मक | Assertive Sentence

जिन वाक्यों में क्रिया के करने या होने की सूचना मिले, उन्हें विधान वाचक वाक्य करते हैं।
जिस वाक्य में किसी काम या बात का होना पाया जाता है वह विधान वाचक वाक्य का लाता है।
वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है, वह विधानवाचक वाक्य कहलाता है।
ऐसा सामान्य वाक्य जो किसी व्यक्ति या वस्तु के स्थिति या अवस्था का बोध कराता हो कथनात्मक या विधानवाचक वाक्य कहते है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. वर्षा हो रही है।
उदाहरण : 2. राम पढ रहा है।
उदाहरण : 3. जैसे- मैंने दूध पिया।
उदाहरण : 4. मैं खाता हूं
उदाहरण : 5. राम के पिता का नाम दशरथ था।
उदाहरण : 6. लता एक सेविका है।
उदाहरण : 7. दशरथ अयोध्या के राजा थे।
उदाहरण : 8. मदन एक चिकित्सक है।
उदाहरण : 9. भारत एक देश है।
उदाहरण : 10. मैं कल कोलकाता जाऊँगा।

(ii). निषेधवाचक या नकारात्मक | Negative Semtence

ऐसे वाक्य जिसमे "ना " होने का बोध हो या जिस वाक्य में कथन का निषेध किया जाता हो उसे नकारत्मक या निषेधात्मक वाक्य कहते है।
वे वाक्य जो में किसी काम के न होने या न करने का बोध हो उन्हें निषेधात्मक वाक्य कहते है।
जिन वाक्यों से कार्य ना होने का भाव प्रकट होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं।
जिस वाक्य में किसी बात के ना होने या काम के अभाव या नहीं होने का बोध हो वह निषेधात्मक वाक्य कहलाता है।

उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. मैं आज घर जाऊॅंगा।
उदाहरण : 2. वह कल नहीं आएगा।
उदाहरण : 3. आज वर्षा नही होगी।
उदाहरण : 4. तुम खेलने मत जाओ।
उदाहरण : 5. मैंने खाना नहीं खाया।
उदाहरण : 6. तुम क्यों नहीं पढ़ते हो।
उदाहरण : 7. वहां मत जाओ।
उदाहरण : 8. लता बाजार नहीं जाएगी।
उदाहरण : 9. राधा कुछ न कर सकी।
उदाहरण : 10. मैंने दूध नहीं पिया।

(iii) इच्छावाचक | IIIative Sentence

जिन वाक्य‌ों में किसी इच्छा, आकांक्षा या आशीर्वाद का बोध होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
इस वाक्य में किसी आशीर्वाद इच्छा या कामना का बोध हो उसे इच्छा वाचक वाक्य कहते हैं।
जिन वाक्यों से इच्छा, आशीष एवं शुभकामना आदि का बोध हो, उन्हें इच्छा वाचक वाक्य कहते हैं।
जिन वाक्यों में किसी प्रकार की इच्छा, आशीर्वाद, आकांक्षा आदि व्यक्त की जाती हैं, इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. आज तो मैं केवल फल खाऊँगा।
उदाहरण : 2. तुम्हारा नव वर्ष मंगलमय हो।
उदाहरण : 3. तुम्हारा कल्याण हो।
उदाहरण : 4. भगवान तुम्हें लंबी उमर दे।
उदाहरण : 5. नववर्ष मंगलमय हो।
उदाहरण : 6. भगवान करे , इसबार में ज़रूर पास कर जाऊँ।
उदाहरण : 7. मैं आपकी सफलता की शुभेच्छा करता हूँ।
उदाहरण : 8. इस्वर सबका भला करें।
उदाहरण : 9. ईश्वर करे तुम खुश रहो।
उदाहरण : 10. आज मैं जमकर खाऊंगा।

(iv). प्रश्नवाचक | Interrogative Sentence

जिस वाक्य में प्रश्न का बोध हो या किसी से प्रश्न पूछे जाते हो उसे प्रश्न वाचक वाक्य कहते है। प्रश्नवाचक वाक्य को सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रूप में लिखा जा सकता है।
जिसे वाक्य का प्रयोग प्रश्न पूछने के लिए किया जाए, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं ।
वे वाक्य जिनमें प्रश्न पूछने का भाव प्रकट हो, प्रश्नवाचक वाक्य कहलाते है।
वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार प्रश्न किया जाता है, वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाता है।
जिन वाक्यों से किसी प्रकार का प्रश्न पूछने का बोध होता है, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं।
प्रश्न का बोध कराने वाला वाक्य अर्थात जिस वाक्य का प्रयोग प्रश्न पूछने में किया जाए उसे प्रश्नार्थक या प्रश्नवाचक वाक्य करते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. तुम कहाँ रहते हो ?
उदाहरण : 2. वो कब आएगा ?
उदाहरण : 3. राम ने रावण को क्यों मारा?
उदाहरण : 4. आप कहाँ रहते हैं?
उदाहरण : 5. लता का भाई क्या करता है ?
उदाहरण : 6. तुम क्या पढ़ रहे हो?
उदाहरण : 7. क्या तुम आज नहीं जाओगे ?
उदाहरण : 8. भारत क्या है?
उदाहरण : 9. तुम्हारा क्या नाम है ?
उदाहरण : 10. श्रीराम के पिता कौन थे?

(v). आज्ञावाचक या विधिवाचक | Imperative Sentence

जिन वाक्यों के माध्यम से किसी प्रकार की आज्ञा ली या दी जाती हैं, या किसी प्रकार की प्रार्थना, विनती, या अनुमति का भाव प्रकट होता हैं, तो वे वाक्य आज्ञावाचक वाक्य कहलाते हैं।
जिस वाक्य से आज्ञा तथा उपदेश को बोध होता है, वह आज्ञावाचक वाक्य कहलाता है।
जिस वाक्य में आज्ञा , निर्देश , प्रार्थना , या विनय आदि के भाव का पता चलता हो उसे आज्ञार्थक या विधिवाचक वाक्य कहते है।
जिन वाक्यों से आज्ञा प्रार्थना, उपदेश आदि का ज्ञान होता है, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते है।
वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार की आज्ञा दी जाती है या प्रार्थना किया जाता है, वह विधिसूचक वाक्य कहलाता हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. कृपया बैठ जाइये।
उदाहरण : 2. वर्षा होने पर ही फसल होगी।
उदाहरण : 3. कृपया अंदर आइये।
उदाहरण : 4. हमारे घर पधार कर हमें अनुगृहीत करें।
उदाहरण : 5. इस कुर्सी पर बैठो
उदाहरण : 6. क्या हम आपसे कुछ पूछ सकते हैं।
उदाहरण : 7. एक गिलास पानी लाओ
उदाहरण : 8. सुन्दर लेख बनायें।
उदाहरण : 9. शांत रहो।
उदाहरण : 10. खड़े हो जाओ

(vi). संकेतवाचक | Conditional Sentence

जिस वाक्य में संकेत या शर्त हो, उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं।
जिस वाक्य में किसी पर संकेत किया जाता हो या किसी कार्य को होने के लिए शर्त रखा जाता हो उसे संकेत वाचक या शर्त वाची वाक्य भी कहते है।
जिन वाक्यों से शर्त्त (संकेत) का बोध होता है यानी एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते है
जिन वाक्यों में किसी संकेत का बोध होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं।
जिन वाक्यों में एक क्रिया का होना दूसरी क्रिया पर निर्भर होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं।
जिन वाक्यों से हमें किसी प्रकार के संकेत का बोध होता हैं ,वे वाक्य संकेतवाचक वाक्य कहलाते हैं।
जिस वाक्य में किसी काम के पूरा होने में संदेह है या संभावना का भाव प्रकट हो ,उसे संदेह वाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. मैं वहां दोस्तों के साथ खेल रहा हूँ ।
उदाहरण : 2. शायद वह कल आएंगे।
उदाहरण : 3. ये सारी सब्जियां उस तरफ एक टोकरी में रख दो।
उदाहरण : 4. आज अगर भैया होते तो सब ठीक होता।
उदाहरण : 5. हमारा घर यहाँ विद्यालय के पास में ही हैं।
उदाहरण : 6. सोनु उधर रहता है।
उदाहरण : 7. यदि परिश्रम करोगे तो अवश्य सफल होंगे।
उदाहरण : 8. अगर वर्षा होगी तो फसल भी ठीक होगा।
उदाहरण : 9. सोनु उधर रहता है।
उदाहरण : 10. राम का मकान उधर है।

(vii).विस्मयसूचक या विस्मयादिबोधक
Exclamatory Sentence

जिन वाक्यों में आश्चर्य, शोक, घृणा आदि का भाव ज्ञात हो उन्हें विस्मयादिबोधक वाक्य कहते है।
जिस वाक्य के द्वारा शोक, हर्ष, आश्चर्य आदि के भाव प्रकट होते हैं, वह विस्मयादिवाचक वाक्य कहलाता है।
वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की गहरी अनुभूति का प्रदर्शन किया जाता है, वह विस्मयादिबोधक वाक्य कहलाता हैं।
जिन वाक्यों से आश्चर्य, घृणा, क्रोध, शोक आदि का भाव प्रकट हो, उन्हें विस्मयवाचक वाक्य कहते हैं। इसे ‘!’ चिह्न के साथ लिखा जाता है।
जिन वाक्यों से किसी भी मनुष्य के भीतर हर्ष, उल्लास, क्रोध, आश्चर्य जैसे आकस्मिक भाव उत्पन्न होते हैं, वे वाक्य विस्मयादिबोधक वाक्य कहलाते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. शाबाश! तुमने कर दिखाया |
उदाहरण : 2. अरे! यह क्या हो गया।
उदाहरण : 3. अरे ! आप कब आये।
उदाहरण : 4. अहा! कितना सुन्दर उपवन है।
उदाहरण : 5. शाबाश ! बहुत अच्छा खेलें।
उदाहरण : 6. वाह! कितना सुंदर दृश्य है।
उदाहरण : 7. ओह! कितनी ठंडी रात है।
उदाहरण : 8. ओह ! कितनी गहरी चोट लगी हैं।
उदाहरण : 9. बल्ले! हम जीत गये।
उदाहरण : 10. हुर्रे ! हम जीत गए।

(viii). संदेहवाचक | Sentence indicating Doubt

जिस वाक्य में किसी कार्य के होने के बारे में संदेह प्रकट किया जाता है, उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।
जिस वाक्य में किसी के संदेह या सम्भावना का बोध कराता हो उसे संदेह वाचक वाक्य कहते है।
जिन वाक्य‌ों में संदेह का बोध होता है, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।
जिन वाक्यों से संदेह या संभावना व्यक्त होती है, उन्हें संदेह वाचक वाक्य कहते हैं।
जिस वाक्य में किसी काम के पूरा होने में संदेह है या संभावना का भाव प्रकट हो ,उसे संदेह वाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. शायद वह कल आएंगे।
उदाहरण : 2. शायद दरवाजे पर कोई हैं।
उदाहरण : 3. जैसे आज वर्षा होगी हो सकती है।
उदाहरण : 4. क्या हम पहले भी कहीं मिल चुके हैं।
उदाहरण : 5. मुझे कुछ आवाज सुनायी दी।
उदाहरण : 6. क्या उसने काम कर लिया ?
उदाहरण : 7. क्या वह यहाँ आ गया ?
उदाहरण : 8. अब तक वह आ चुका होगा।
उदाहरण : 9. कहीं आज बारिश ना होने लगें।
उदाहरण : 10. हो सकता है कि वह आज स्कूल आए |

3. क्रिया के आधार पर वाक्य के प्रकार

क्रिया के आधार पर वाक्य के तीन प्रकार होते हैं।

  • (i). कर्तृ वाच्य
  • (ii). कर्मवाच्य
  • (iii). भाव वाच्य

(i). कर्तृ वाच्य

जब वाक्य में क्रिया का संबंध सीधा कर्ता से होता है व क्रिया के लिंग, वचन ,कर्ता कारक के अनुसार प्रयोग होते हैं उसे कर्तृ वाच्य कहते हैं।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. राम गाना गा रहा है।
उदाहरण : 2. सीता गाना गा रही है।

(ii). कर्मवाच्य

जब वाक्य में क्रिया का संबंध कर्म से होता है अर्थात क्रिया के लिंग वचन कर्ता के अनुसार ना होकर कर्म के अनुसार होते हैं , उसे कर्मवाच्य या कर्म वाक्य कहा जाता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. अयन के द्वारा दूध पिया गया।
उदाहरण : 2. या द्वारा खेल खेला गया।

(iii). भाव वाच्य

जब वाक्य में क्रिया कर्ता और कर्म के अनुसार ना होकर भाव के अनुसार होती है तो उसे भाव वाचक वाक्य कहते हैं। उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. अक्षिता से पढ़ा नहीं जाता।
उदाहरण : 2. शगुन से पढ़ा नहीं जाता।

वाक्य के अनिवार्य तत्व

वाक्य में निम्नलिखित छ तत्व अनिवार्य है-

  • (1). सार्थकता
  • (2). योग्यता
  • (3). आकांक्षा
  • (4). निकटता
  • (5). क्रम
  • (6). अन्वय

(1) सार्थकता

सार्थकता वाक्य का प्रमुख गुण है। इसके लिए आवश्यक है कि वाक्य में सार्थक शब्दों का ही प्रयोग हो, तभी वाक्य भावाभिव्यक्ति के लिए सक्षम होगा।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. राम रोटी पीता है।
यहाँ 'रोटी पीना' सार्थकता का बोध नहीं कराता, क्योंकि रोटी खाई जाती है। सार्थकता की दृष्टि से यह वाक्य अशुद्ध माना जाएगा। सार्थकता की दृष्टि से सही वाक्य होगा- राम रोटी खाता है।
उदाहरण : 2. मोहन पानी खाता है।
इस वाक्य में ‘पानी खाना ‘ सार्थकता का बोध नहीं कराता. सार्थकता की दृष्टि से यह वाक्य अशुद्ध माना जाएगा।

इस वाक्य को पढ़ते ही पाठक के मस्तिष्क में वाक्य की सार्थकता उपलब्ध हो जाती है। कहने का आशय है कि वाक्य का यह तत्त्व रचना की दृष्टि से अनिवार्य है। इसके अभाव में अर्थ का अनर्थ सम्भव है।

(2). योग्यता

किसी भी वाक्य में प्रसंग के अनुकूल भावों का बोध कराने वाली योग्यता या क्षमता होनी चाहिए। इसके अभाव में वाक्य अशुद्ध हो जाता है।
वाक्य में सार्थक शब्दों के भाषानुकूल क्रमबद्ध होने के साथ-साथ उसमें योग्यता अनिवार्य तत्त्व है। प्रसंग के अनुकूल वाक्य में भावों का बोध कराने वाली योग्यता या क्षमता होनी चाहिए। इसके आभाव में वाक्य अशुद्ध हो जाता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. हिरण उड़ता है।
ययहाँ पर हिरण और उड़ने की परम्पर योग्यता नहीं है, अतः यह वाक्य अशुद्ध है। यहाँ पर उड़ता के स्थान पर चलता या दौड़ता लिखें तो वाक्य शुद्ध हो जाएगा।

वाक्य लिखते या बोलते समय निम्नलिखित बातों पर निश्चित रूप से ध्यान देना चाहिए-

(a). पद प्रकृति-विरुद्ध नहीं हो : -हर एक पद की अपनी प्रकृति (स्वभाव/धर्म) होती है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. यदि कोई कहे मैं आग खाता हूँ।
उदाहरण : 2. हाथी ने दौड़ में घोड़े को पछाड़ दिया।
उक्त वाक्यों में पदों की प्रकृतिगत योग्यता की कमी है। आग खायी नहीं जाती। हाथी घोड़े से तेज नहीं दौड़ सकता।
इसी जगह पर यदि कहा जाय:-
उदाहरण : 1. मैं आम खाता हूँ।
उदाहरण : 2. घोड़े ने दौड़ में हाथी को पछाड़ दिया।
तो दोनों वाक्यों में योग्यता आ जाती है।

(b). बात-समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि विरुद्ध न हो :- वाक्य की बातें समाज, इतिहास, भूगोल, विज्ञान आदि सम्मत होनी चाहिए; ऐसा नहीं कि जो बात हम कह रहे हैं, वह इतिहास आदि विरुद्ध है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. महाभारत 25 दिन तक चला।
उदाहरण : 2. दानवीर कर्ण द्वारका के राजा थे।
उदाहरण : 3. ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के परमाणु परस्पर मिलकर कार्बनडाई ऑक्साइड बनाते हैं।
उदाहरण : 4. भारत के उत्तर में श्रीलंका है।

(3). आकांक्षा

आकांक्षा का अर्थ है- इच्छा। एक पद को सुनने के बाद दूसरे पद को जानने की इच्छा ही ‘आकांक्षा’ है। यदि वाक्य में आकांक्षा शेष रह जाती है तो उसे अधूरा वाक्य माना जाता है; क्योंकि उससे अर्थ पूर्ण रूप से अभिव्यक्त नहीं हो पाता है।
उदाहरण जैसे :-
यदि कहा जाय ‘खाता है’ तो बात स्पष्ट नहीं हो पा रही है कि क्या कहा जा रहा है- किसी के भोजन करने की बात कही जा रही है या बैंक के खाते के बारे में ?

(4). निकटता

बोलते तथा लिखते समय वाक्य के शब्दों में परस्पर निकटता का होना बहुत आवश्यक है, रूक-रूक कर बोले या लिखे गए शब्द वाक्य नहीं बनाते। अतः वाक्य के पद निरंतर प्रवाह में पास-पास बोले या लिखे जाने चाहिए।
उदाहरण जैसे :-
गंगा.................... पश्चिम
से ........................................ पूरब
की ओर बहती है।
गंगा पश्चिम से पूरब की ओर बहती है।

घेरे के अन्दर पदों के बीच की दूरी और समयान्तराल असमान होने के कारण वे अर्थ-ग्रहण खो देते हैं; जबकि नीचे उन्हीं पदों को समान दूरी और प्रवाह में रखने के कारण वे पूर्ण अर्थ दे रहे हैं। अतएव, वाक्य को स्वाभाविक एवं आवश्यक बलाघात आदि के साथ बोलना पूर्ण अर्थ की अभिव्यक्ति के लिए आवश्यक है।

(5). क्रम

क्रम से तात्पर्य है- पदक्रम। सार्थक शब्दों को भाषा के नियमों के अनुरूप क्रम में रखना चाहिए। वाक्य में शब्दों के अनुकूल क्रम के अभाव में अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. नाव में नदी है।
इस वाक्य में सभी शब्द सार्थक हैं, फिर भी क्रम के अभाव में वाक्य गलत है। सही क्रम करने पर नदी में नाव है वाक्य बन जाता है, जो शुद्ध है।

(6). अन्वय

अन्वय का अर्थ है कि पदों में व्याकरण की दृष्टि से लिंग, पुरुष, वचन, कारक आदि का सामंजस्य होना चाहिए। अन्वय के अभाव में भी वाक्य अशुद्ध हो जाता है। अतः अन्वय भी वाक्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।
उदाहरण जैसे :-
उदाहरण : 1. नेताजी का लड़का का हाथ में बन्दूक था।

इस वाक्य में भाव तो स्पष्ट है लेकिन व्याकरणिक सामंजस्य नहीं है। अतः यह वाक्य अशुद्ध है। यदि इसे नेताजी के लड़के के हाथ में बन्दूक थी, कहें तो वाक्य व्याकरणिक दृष्टि से शुद्ध होगा।

वाक्य-विग्रह

वाक्य के विभिन्न अंगों को अलग-अलग किये जाने की प्रक्रिया को वाक्य-विग्रह कहते हैं। इसे ‘वाक्य-विभाजन’ या ‘वाक्य-विश्लेषण’ भी कहा जाता है। सरल वाक्य का विग्रह करने पर एक उद्देश्य और एक विद्येय बनते हैं। संयुक्त वाक्य में से योजक को हटाने पर दो स्वतंत्र उपवाक्य (यानी दो सरल वाक्य) बनते हैं। मिश्र वाक्य में से योजक को हटाने पर दो अपूर्ण उपवाक्य बनते है।

सरल वाक्य = 1 उद्देश्य + 1 विद्येय

संयुक्त वाक्य = सरल वाक्य + सरल वाक्य

मिश्र वाक्य = प्रधान उपवाक्य + आश्रित उपवाक्य

वाक्यों का रूपान्तरण

किसी वाक्य में अर्थ परिवर्तन किए बिना उसकी संचरना में परिवर्तन करना वाक्यों का रूपान्तरण कहलाती है। एक प्रकार के वाक्य को दूसरे प्रकार के वाक्यों में बदलना वाक्य परिवर्तन या वाक्यों का रूपांतरण कहलाता है। किसी वाक्य के अर्थ में परिवर्तन किए बिना वाक्य की रचना में परिवर्तन किया जा सकता है। सरल वाक्यों से संयुक्त अथवा मिश्र वाक्य बनाए जा सकते हैं। इसी प्रकार संयुक्त अथवा मिश्र वाक्यों को सरल वाक्यों में बदला जा सकता है। ध्यान रखिए कि इस परिवर्तन के कारण कुछ शब्द, योजक चिह्न या संबंधबोधक लगाने या हटाने पड़ सकते हैं। वाक्य परिवर्तन की प्रक्रिया में वाक्य का केवल प्रकार बदला जाता है, उसका अर्थ या काल आदि नहीं।

वाक्य परिवर्तन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें

(a). केवल वाक्य रचना बदलनी चाहिए, अर्थ नहीं।
(b). सरल वाक्यों को मिश्र या संयुक्त वाक्य बनाते समय कुछ शब्द या सम्बन्धबोधक अव्यय अथवा योजक आदि से जोड़ना। जैसे- क्योंकि, कि, और, इसलिए, तब आदि।
(c). संयुक्त/मिश्र वाक्यों को सरल वाक्यों में बदलते समय योजक शब्दों या सम्बन्धबोधक अव्ययों का लोप करना।

सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य में परिवर्तन

उदाहरण : 1.
सरल वाक्य :- बीमार होने के कारण वह परीक्षा में सफल नहीं हो सका।
संयुक्त वाक्य :- वह बीमार था और इसलिए परीक्षा में सफल नहीं हो सका।
उदाहरण : 2.
सरल वाक्य:- सुबह होने पर कुहासा जाता रहा।
संयुक्त वाक्य:- सुबह हुआ और कुहासा जाता रहा।
उदाहरण : 3.
सरल वाक्य :- गरीब को लूटने के अतिरिक्त उसने उसकी हत्या भी कर दी।
संयुक्त वाक्य:- उसने न केवल गरीब को लूटा, बल्कि उसकी हत्या भी कर दी।

संयुक्त वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन

उदाहरण : 1.
संयुक्त वाक्य :- सुबह हुई और कुहासा जाता रहा।
सरल वाक्य :- सुबह होने पर कुहासा जाता रहा।
उदाहरण : 1.
संयुक्त वाक्य :- वह अमीर है फिर भी सुखी नहीं है।
सरल वाक्य :- वह अमीर होने पर भी सुखी नहीं है।
उदाहरण : 3.
संयुक्त वाक्य :- जल्दी चलो, नहीं तो पकड़े जाओगे।
सरल वाक्य :- जल्दी न चलने पर पकड़े जाओगे।

सरल वाक्य से मिश्र वाक्य में परिवर्तन

उदाहरण : 1. सरल वाक्य- उसने अपने मित्र का मकान खरीदा।
मिश्र वाक्य- उसने उस मकान को खरीदा, जो उसके मित्र का था।
उदाहरण : 1.

सरल वाक्य:- अच्छे लड़के परिश्रमी होते हैं।
मिश्र वाक्य:- जो लड़के अच्छे होते है, वे परिश्रमी होते हैं।

उदाहरण : 3.

रल वाक्य:- लोकप्रिय कवि का सम्मान सभी करते हैं।
मिश्र वाक्य:- जो कवि लोकप्रिय होता है, उसका सम्मान सभी करते हैं.

मिश्र वाक्य से सरल वाक्य में परिवर्तन

उदाहरण : 1. मिश्र वाक्य :- उसने कहा कि मैं निर्दोष हूँ।
सरल वाक्य :- उसने अपने को निर्दोष घोषित किया।
उदाहरण : 2. मिश्र वाक्य :- मुझे बताओ कि तुम्हारा जन्म कब और कहाँ हुआ था।
सरल वाक्य :- तुम मुझे अपने जन्म का समय और स्थान बताओ।
उदाहरण : 3. मिश्र वाक्य :- जो छात्र परिश्रम करेंगे, उन्हें सफलता अवश्य मिलेगी।
सरल वाक्य :- परिश्रमी छात्र अवश्य सफल होंगे।

वाक्य रचना के नियम

‘व्याकरण-सिद्ध पदों को मेल के अनुसार यथाक्रम रखने को ही ‘वाक्य-रचना’ कहते है।’ वाक्य का एक पद दूसरे से लिंग, वचन, पुरुष, काल आदि का जो संबंध रखता है, उसे ही ‘मेल’ कहते हैं। जब वाक्य में दो पद एक ही लिंग-वचन-पुरुष-काल और नियम के हों तब वे आपस में मेल, समानता या सादृश्य रखनेवाले कहे जाते हैं।
शुद्ध वाक्यों की रचना के लिए
(i) क्रम
(ii) अन्वय
(iii) प्रयोग से सम्बद्ध कुछ सामान्य नियमों का ज्ञान आवश्यक है।

(i) क्रम


किसी वाक्य के सार्थक शब्दों को यथास्थान रखने की क्रिया को ‘क्रम’ अथवा ‘पद क्रम’ कहते हैं।
इसके नियम इस प्रकार हैं :-
(i) वाक्य के आरम्भ में कर्ता, मध्य में कर्म और अन्त में क्रिया होनी चाहिए।
उदाहरण जैसे :-
राम ने भोजन किया।
यहाँ कर्ता ‘राम’, कर्म ‘भोजन’ और अन्त में क्रिया ‘क्रिया’ है।
(ii) उद्देश्य या कर्ता के विस्तार को कर्ता के पहले और विधेय या क्रिया के विस्तार को विधेय के पहले रखना चाहिए।
उदाहरण जैसे :-
अच्छे विद्यार्थी धीरे-धीरे पढ़ते हैं।
(iii) कर्ता और कर्म के बीच अधिकरण, अपादान, सम्प्रदान और करण कारक क्रमशः आते हैं।
उदाहरण जैसे :-
राम ने घर में (अधिकरण) आलमारी से (अपादान) मोहन के लिए (सम्प्रदान) हाथ से (करण) किताब निकाली।
(iv) सम्बोधन आरम्भ में आता है।
उदाहरण जैसे :-
हे प्रभु, मुझ पर कृपा करें।
(v) विशेषण विशेष्य या संज्ञा के पहले आता है।
उदाहरण जैसे :-
मेरी काली कमीज कहीं खो गयी।
(vi) क्रियाविशेषण क्रिया के पहले आता है।
उदाहरण जैसे :-
वह तेज दौड़ता है।
(vii) प्रश्रवाचक पद या शब्द उसी संज्ञा के पहले रखा जाता है, जिसके बारे में कुछ पूछा जाय।
उदाहरण जैसे :-
क्या राम सो रहा है ?

क्रम-संबंधी कुछ अन्य बातें

(1) प्रश्नवाचक शब्द को उसी के पहले रखना चाहिए, जिसके विषय में मुख्यतः प्रश्न किया जाता है।
उदाहरण जैसे :-
वह कौन व्यक्ति है ?
(2) यदि पूरा वाक्य ही प्रश्नवाचक हो तो ऐसे शब्द (प्रश्नसूचक) वाक्यारंभ में रखना चाहिए।
उदाहरण जैसे :-
क्या आपको यही बनना था ?
(3) यदि ‘न’ का प्रयोग आदर के लिए आए तो प्रश्नवाचक का चिह्न नहीं आएगा और ‘न’ का प्रयोग अंत में होगा।
उदाहरण जैसे :-
आप मेरे यहाँ पधारिए न।
(4) यदि ‘न’ क्या का अर्थ व्यक्त करे तो अंत में प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग करना चाहिए और ‘न’ वाक्यान्त में होगा।
उदाहरण जैसे :-
वह आज-कल स्वस्थ है न ?
(5) पूर्वकालिक क्रिया मुख्य क्रिया के पहले आती है।
उदाहरण जैसे :-
वह खाकर विद्यालय जाता है।
(6) विस्मयादिबोधक शब्द प्रायः वाक्यारंभ में आता है।
उदाहरण जैसे :-
वाह ! आपने भी खूब कहा है।

अन्वय

‘अन्वय’ में लिंग, वचन, पुरुष और काल के अनुसार वाक्य के विभित्र पदों (शब्दों) का एक-दूसरे से सम्बन्ध या मेल दिखाया जाता है। यह मेल कर्ता और क्रिया का, कर्म और क्रिया का तथा संज्ञा और सर्वनाम का होता हैं।

कर्ता और क्रिया का मेल

(i) यदि कर्तृवाचक वाक्य में कर्ता विभक्तिरहित है, तो उसकी क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होंगे।
उदाहरण जैसे :-
करीम किताब पढ़ता है।
(ii) यदि वाक्य में एक ही लिंग, वचन और पुरुष के अनेक विभक्तिरहित कर्ता हों और अन्तिम कर्ता के पहले ‘और’ संयोजक आया हो, तो इन कर्ताओं की क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मोहन और सोहन सोते हैं।
आशा, उषा और पूर्णिमा स्कूल जाती हैं।
(iii) यदि वाक्य में दो भित्र लिंगों के कर्ता हों और दोनों द्वन्द्व समास के अनुसार प्रयुक्त हों तो उनकी क्रिया पुंलिंग बहुवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
नर-नारी गये।
(iv) यदि वाक्य में दो भित्र-भित्र विभक्तिरहित एकवचन कर्ता हों और दोनों के बीच ‘और’ संयोजक आये, तो उनकी क्रिया पुंलिंग और बहुवचन में होगी.
उदाहरण जैसे :-
राधा और कृष्ण रास रचते हैं।
बाघ और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।
(v) यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक कर्ता हों, तो क्रिया बहुवचन में होगी और उनका लिंग अन्तिम कर्ता के अनुसार होगा।
उदाहरण जैसे :-
एक लड़का, दो बूढ़े और तीन लड़कियाँ आती हैं।
(vi) यदि वाक्य में अनेक कर्ताओं के बीच विभाजक समुच्चयबोधक अव्यय ‘या’ अथवा ‘वा’ रहे तो क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग और वचन के अनुसार होगी।
उदाहरण जैसे :-
घनश्याम की पाँच दरियाँ व एक कम्बल बिकेगा।
हरि का एक कम्बल या पाँच दरियाँ बिकेंगी।
मोहन का बैल या सोहन की गायें बिकेंगी।
(vii) यदि उत्तमपुरुष, मध्यमपुरुष और अन्यपुरुष एक वाक्य में कर्ता बनकर आयें तो क्रिया उत्तम पुरुष के अनुसार होगी।
उदाहरण जैसे :-
वह और हम जायेंगे।

कर्म और क्रिया का मेल

(i) यदि वाक्य में कर्ता ‘ने’ विभक्ति से युक्त हो और कर्म की ‘को’ विभक्ति न हो, तो उसकी क्रिया कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होगी।
उदाहरण जैसे :-
मोहन ने पुस्तक पढ़ी।
(ii) यदि कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति चिह्नों से युक्त हों, तो क्रिया सदा एकवचन पुल्लिंग और अन्यपुरुष में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मैंने कृष्ण को बुलाया।
(iii) यदि कर्ता ‘को’ प्रत्यय से युक्त हो और कर्म के स्थान पर कोई क्रियार्थक संज्ञा आए तो क्रिया सदा पुंलिंग, एकवचन और अन्यपुरुष में होगी।
उदाहरण जैसे :-
तुम्हें (तुमको) पुस्तक पढ़ना नहीं आता।
(iv) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक विभक्तिरहित कर्म एक साथ आएँ, तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
श्याम ने बैल और घोड़ा मोल लिए।
(v) यदि एक ही लिंग-वचन के अनेक प्राणिवाचक-अप्राणिवाचक अप्रत्यय कर्म एक साथ एकवचन में आयें, तो क्रिया भी एकवचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मैंने एक गाय और एक भैंस खरीदी।
(vi) यदि वाक्य में भित्र-भित्र लिंग के अनेक प्रत्यय कर्म आयें और वे ‘और’ से जुड़े हों, तो क्रिया अन्तिम कर्म के लिंग और वचन में होगी।
उदाहरण जैसे :-
मैंने मिठाई और पापड़ खाये।

उपवाक्य | Clouse

प्रधान वाक्य एवं उसपर आश्रित उपवाक्य की पहचान।
(क) जिसकी वाक्य की क्रिया मुख्य होती है उसे प्रधान वाक्य कहते है।
(ख) आश्रय उपवाक्यों का प्रारंभ प्रायः यदि , जिसे , क्योंकि , जो , कि आदि से होता है।
(ग) मिस्र वाक्य में जो क्रिया वाक्य के अंत में बनी रहती है उसे उसे आश्रित उपवाक्य कहते है।
जैसे -: लता जल्दी चलती तो अवश्य समय पर पहुंच जाती।
इसे सरल वाक्य में इस प्रकार बदलेंगे :-
लता जल्दी चलने पर अवश्य समय पर पहुंच जाती।
यहाँ "जल्दी चलती" क्रिया रूपांतरित हो गई है अतः इसे आश्रित उपवाक्य कहेंगे।
दूसरी तरफ "पहुंच जाती" क्रिया कोई बदलाब नहीं हुआ है अतः इसे प्रधान उपवाक्य कहते है।

उपवाक्य के निम्नलिखित तीन भेद होते है।

(1). संज्ञा उपवाक्य | Noune clause
(2). विशेषण उपवाक्य | Adjective clause
(3). क्रियाविशेषण उपवाक्य | Adverbial clause

(1). संज्ञा उपवाक्य | Noune clause

जो प्रधान उपवाक्य वाक्य के संज्ञा या संज्ञा पदबंध के स्थान पर आता हो उसे संज्ञा पदबंध कहते है।
उदाहरण जैसे :-
भारत ने कहा कि हम लड़ाई नहीं चाहते।
भारत ने कहा ( उपवाक्य का कर्म ) हम लड़ाई नहीं चाहते ( उपवाक्य )

(2). विशेषण उपवाक्य | Adjective clause

यदि कोई आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य के संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बतलाता हो
जैसे -: यह सफ़ेद गाय है जो बहुत सुन्दर है। यह वही है जो , कक्षा में प्रथम आई थी। " जो बहुत सुन्दर है " एक ऐसा आश्रित वाक्य है जो की सफ़ेद गाय (संज्ञा ) की विशेषता बतलाता है। दूसरे वाक्य में "कक्षा में प्रथम आई थी ऐसा आश्रित उपवाक्य है जो वही (सर्वनाम ) की वियशेषता विशेषता बताता है।

(3). क्रियाविशेषण उपवाक्य | Adverbial clause

यदि किसी वाक्य में आश्रित उपवाक्य प्रमुख उपवाक्य के क्रिया का विशेषता बतलाता हो उसे क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते है।
जैसे :-
यदि बोलना नहीं आता , तो चुप रहना चाहिए। जब में स्टेशन पहुंचा तो ट्रैन जा चुकी थी।

क्रिया विशेषण उपवाक्य के भेद

क्रिया विशेषण उपवाक्य के पांच भेद है।
(1).काल वाचक
(2). स्थानवाचक
(3). रीतिवाचक
(4). परिमाणवाचक
(5). हेतुसूचक वाक्य (परिणाम वाचक वाक्य)

(1).काल वाचक

तुम्हारे आने के पहले वो जा चुका था।
जैसे ही मैं घर पहुंचा बारिश छूट चुकी थी।

(2). स्थानवाचक

तुम जहाँ पढ़ते हो मेरा बेटा भी वहीं पढ़ता है।
तुम जिधर जा रहे हो , मैं पहले उधर चुका हूँ।

(3). रीतिवाचक

तुम वैसा ही करते जाओ , जैसा मैं करता जाता हूँ।
बच्चे वही सीखते है , जो वे बड़ों को करते देखते है।

(4). परिमाणवाचक

जितना चीनी डालोगे चाय उतनी मीठी होगी।
तुम जितना पढ़ाई करोगे , उतना ही अच्छा नंबर आएगा।

(5). हेतुसूचक वाक्य (परिणाम वाचक वाक्य)

यदि पढ़ते तो पास अवश्य होते।
मेहनत करेंगे तो सफलता अवश्य मिलेगी।

इसके अलावे क्रिया विशेषण वाक्य के दो और भेद बताएं गए है।

कारणसूचक

ऐसा उपवाक्य जिसमे क्रिया के होने या ना होने का बोध कराता हो ,
कारण सूचक क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते है।
जैसे -
वो प्रथम आई है क्योंकि उसने बहुत मेहनत की थी।,/p>

प्रयोजन सूचक

जिस उपवाक्य से क्रिया के उद्देश्य अथवा प्रयोजन का पता चलता हो उसे प्रयोजन सूचक क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते है।
जैसे -
तुम अच्छे से पढ़ाई करो ताकि अच्छे नंबरों से उत्तरीन हो सको।
जल्दी चलो ताकि ट्रैन पकड़ सको।

प्रेरणार्थक वाक्य

जिस वाक्य में कर्ता स्वंय से क्रिया करके किसी ओर से करवाता हो उसे प्रेरणार्थक वाक्य कहते है।
दूसरे शब्दों में कहे तो जब कोई व्यक्ति दूसरे के प्रेरणा से कार्य को करता हो तो प्रेरणार्थक वाक्य कहलाता है।
प्रेरणार्थक क्रिया के दो भाग होते है। (1) प्रथम प्रेरणार्थक
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक वाक्य

(1) प्रथम प्रेरणार्थक

इसमे दो कर्ता होता है प्रथम करने वाला और दूसरा कराने वाला अर्थात सहायता करने वाला जैसे - शिक्षिका बच्चों को पढ़ना सीखा रही है। बच्चों ( कर्ता )जिसने सीखा शिक्षिका (प्रेरक कर्ता ) जिसके कहने से सिखाने का कार्य किया गया।

(2) द्वितीय प्रेरणार्थक वाक्य

इस प्रकार के वाक्य में पहला प्रेरक कर्ता कार्य को करने के लिए किसी दूसरे प्रेरक कर्ता की सहायता लेता हो।
उदाहरण जैसे :-
मैंने उसे उसके पिता जी से डाट खिलवाई।

वाक्य बोधक वाक्य रचना

जिस वाक्य में कर्ता क्रिया के करने के लिए सामाजिक , राजनीतिक , धार्मिक , प्रशासनिक दवाव होता है।
उदाहरण जैसे :-
अब आपको चलना ही पड़ेगा।
सभी को गुरु का आदर करना चाहिए।

प्रछन्न वाक्य ( लघु वाक्य)

कोई संवाद पूर्ण रूप से वाक्य ना लगते हुए भी एक पुरे वाक्य के तरह अर्थ प्रकट करता हो उसे लघु वाक्य कहते है।
उदाहरण जैसे :-
प्रश्न - तुम्हारा नाम क्या है ?
उत्तर - दिनेश। प्रश्न -तुम कहा से आ रहे हो ?
उत्तर - मुंबई।
उपर्युक्त संबाद में दिनेश से अभिप्राय है , मेरा नाम दिनेश है।मुंबई से आशय है कि मैं मुंबई से आ रहा हूँ।
लघु वाक्य तीन प्रकार के होते है।

अध्याहार के कारन बने लघु वाक्य

इस वाक्य में वक्ता कहना चाहते हुए भी शब्दों का लोप कर देता है।
सामाजिक सम्प्रेषण में प्रयुक्त लघु वाक्य -:कुछ वाक्य सामाजिक व्यवहार में लघु रूप में प्रचलित है।
. उदाहरण जैसे :-
नमस्ते
प्रणाम
जी
साहव
हेलो
शुक्रिया आदि

उद्गारात्मकता लघु वाक्य

जीन शब्दों से वक्ता अपने उदगार व्यक्त करता हो उसे उद्गारत्मकता लघु वाक्य कहते है।
उदाहरण जैसे :-
सुन्दर !
क्या खूब !
चोर जेल से फरार !
लाओ तो जाने ! आ





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