VYANJAN | Consonants

हिन्दी व्याकरण : स्वर और व्यंजन | Vowels and Consonants


स्वर और व्यंजन : हिन्दी व्याकरण
Vowels and Consonants

हिंदी वर्णमाला में वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है -
१. स्वर
२. व्यंजन।

व्यंजन की परिभाषा,भेद/ प्रकार और उदाहरण

व्यंजन की परिभाषा | Definition of Consonants
जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता हो या जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा रुकावट के साथ मुँह के बाहर निकलती निकलती है, वे व्यंजन कहलाते हैं, जैसे - क, ग, च, द, न, प, ब, य, ल, स, ह आदि।

जिन वर्णो को बोलने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है उन्हें व्यंजन कहते है।दूसरे शब्दो में- व्यंजन उन वर्णों को कहते हैं, जिनके उच्चारण में स्वर वर्णों की सहायता ली जाती है।जैसे- क, ख, ग, च, छ, त, थ, द, भ, म इत्यादि।

'क' से विसर्ग ( : ) तक सभी वर्ण व्यंजन हैं। प्रत्येक व्यंजन के उच्चारण में 'अ' की ध्वनि छिपी रहती है। 'अ' के बिना व्यंजन का उच्चारण सम्भव नहीं। जैसे- ख्+अ=ख, प्+अ =प। व्यंजन वह ध्वनि है, जिसके उच्चारण में भीतर से आती हुई वायु मुख में कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी रूप में, बाधित होती है। स्वरवर्ण स्वतंत्र और व्यंजनवर्ण स्वर पर आश्रित है। हिन्दी में व्यंजनवर्णो की संख्या ३३ है।

मूल व्यंजनक ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह
उत्क्षिप्त व्यंजनड़ ढ़
संयुक्ताक्षर व्यंजन क्ष त्र ज्ञ श्र

व्यंजन के भेद / प्रकार
Types of Consonants

(i)उच्चारण के स्थान (मुख के विभिन्न अवयव) के आधार पर - कंठ, तालु आदि

कंठ्य : (गले से) क ख ग घ ङ
तालव्य : (तालू से) च छ ज झ ञ य श
मूर्धन्य : ( तालू के मूर्धा भाग से) ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़ ष
दन्त्य : (दांतों के मूल से) त थ द ध न
वर्त्स्य : (दंतमूल से) (न) स ज़ र ल
ओष्ठ्य : (दोनों होठो से) प फ ब भ म
दंतोष्ठ्य : (निचले होठ और ऊपर के दांतों से) व फ़
स्वरयंत्रीय : (स्वरयंत्र से)

(ii) प्रयत्न के आधार पर व्यंजन के भेद

स्वरतंत्री में कंपन के आधार पर - अघोष और सघोष

अघोष : जिन ध्वनियों का उच्चारण स्वरतंत्रियों में कंपन के बिना होता है, उनको अघोष व्यंजन कहते हैं; जैसे - क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ (वर्णों के प्रथम तथा द्वितीय व्यंजन)
फ़ श ष स ।

सघोष : जिन ध्वनियों का उच्चारण स्वरतंत्रियों में कंपन के साथ होता है, उनको सघोष व्यंजन कहते हैं; जैसे - ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म (वर्णों के तृतीय, चतुर्थ और पंचम व्यंजन)
ड़ ढ़ ज य र ल व ह
सभी स्वर

(iii). श्वास (प्राण) की मात्रा के आधार पर - अल्पप्राण और महाप्राण

श्वास (प्राण) की मात्रा के अनुसार व्यंजनों को दो भागों में बांटा गया हैं।

(a) अल्पप्राण व्यंजन | Alppran
(b) महाप्राण व्यंजन | Mahapran

(a)अल्पप्राण
Alppraan

ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में कम समय लगता है और बोलते समय मुख से कम वायु निकलती है उन्हें अल्पप्राण व्यंजन (Alppran) कहते हैं। इनकी संख्या 20 होती है।

टिप्पणी-(Note) :-(वर्णों के प्रथम, तृतीय और पंचम)

अल्पप्राण
Alppraan
क-वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर
च-वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर
ट-वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर
त-वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर
प-वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर
चारों अन्तस्थ व्यंजन - य र ल व

टिप्पणी-(Note) : वर्ग का 1,3,5 अक्षर - अन्तस्थ - द्विगुण या उच्छिप्त

(b) महाप्राण व्यंजन | Mahapran

ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में अधिक प्रत्यन करना पड़ता है और बोलते समय मुख से अधिक वायु निकलती है। उन्हें महाप्राण व्यंजन (Mahapran) कहते हैं। इनकी संख्या 15 होती है।

टिप्पणी-(Note) :-(वर्णों के द्वितीय और चतुर्थ)


महाप्राण व्यंजन | Mahapran
क-वर्ग का दूसरा, चौथा अक्षर
च-वर्ग का दूसरा, चौथा अक्षर
ट-वर्ग का दूसरा, चौथा अक्षर
त-वर्ग का दूसरा, चौथा अक्षर
प-वर्ग का दूसरा, चौथा अक्षर
चारों उष्म व्यंजन - श ष स ह
एक उच्छिप्त व्यंजन - ढ़

टिप्पणी-(Note) : वर्ग का 2, 4 अक्षर - उष्म व्यंजन - एक उच्छिप्त व्यंजन

अल्पप्राण - महाप्राण, घोष - अघोष तालिका
Alppraan Mahaapran, Ghosh Aghosh table :

स्थान अघोष घोष अघोष घोष
अल्पप्राण महाप्राण अल्पप्राण महाप्राण अल्पप्राण महाप्राण अल्पप्राण
कण्ठ - -
तालु
मूर्द्धा
दन्त
ओष्ठ - -
- - - - - : -
  • घोष या सघोष दोनों का एक ही अर्थ है।

वर्णमाला | Varnamala

  • स्वर = 11 ----- [ह्स्व स्वर - लघु स्वर =अ, इ, उ, ऋ ] , [दीर्घ स्वर = आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ]
  • कुल स्वर =13 ---- [ह्स्व स्वर - लघु स्वर =अ, इ, उ, ऋ ] , [दीर्घ स्वर = आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ] , [अयोगवाह =अं, अः]
  • व्यंजन = 33 ---- [स्पर्श व्यंजन=कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग ] , [अन्तस्थ व्यंजन =य, र, ल, व] [उष्म व्यंजन=श, ष, स, ह]
  • कुल व्यंजन = 35 ---- [वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन=कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग ] , [अन्तस्थ व्यंजन =य, र, ल, व] [उष्म व्यंजन=श, ष, स, ह] [उच्छिप्त/उक्षिप्त/ ताड़नजातव्यंजन=ढ़, ड़]
  • वर्ण = 48 ---- [35+13]
  • कुल वर्ण = 52 ---- [35+13] + [संयुक्त व्यंजन=(क्ष - क् + ष्) , (त्र - त् + र्), (ज्ञ - ज् + ञ्), (श्र - श् + र् )]

(v). श्वास के अवरोध के आधार पर - स्पर्श और संघर्षी

वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन:

स्पर्श का अर्थ होता है -छूना। जिन व्यंजनों का उच्चारण करते समय जीभ मुँह के किसी भाग जैसे- कण्ठ, तालु, मूर्धा, दाँत, अथवा होठ का स्पर्श करती है, उन्हें स्पर्श व्यंजन कहते है।
दूसरे शब्दो में- ये कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दन्त और ओष्ठ स्थानों के स्पर्श से बोले जाते हैं। इसी से इन्हें स्पर्श व्यंजन कहते हैं।
इन्हें हम 'वर्गीय व्यंजन' भी कहते है; क्योंकि ये उच्चारण-स्थान की अलग-अलग एकता लिए हुए वर्गों में विभक्त हैं।
ये 25 व्यंजन होते है

क ख ग घ ङ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म

(1)कवर्ग- क ख ग घ ङ ये कण्ठ का स्पर्श करते है।
(2)चवर्ग- च छ ज झ ञ ये तालु का स्पर्श करते है।
(3)टवर्ग- ट ठ ड ढ ण (ड़, ढ़) ये मूर्धा का स्पर्श करते है।
(4)तवर्ग- त थ द ध न ये दाँतो का स्पर्श करते है।
(5) पवर्ग- प फ ब भ म ये होठों का स्पर्श करते है।

स्पर्श-संघर्षी व्यंजन : च छ ज झ ञ (च वर्ग)

अंत:स्थ व्यंजन : य र ल व

'अन्तः' का अर्थ होता है- 'भीतर'। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है।
अन्तः = मध्य/बीच, स्थ = स्थित। इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का-सा होता है। उच्चारण के समय जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती।
ये व्यंजन चार होते है- य, र, ल, व। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन 'अर्द्धस्वर' कहलाते हैं।

उष्म (संघर्षी) व्यंजन : श ष स ह

उष्म का अर्थ होता है- गर्म। जिन वर्णो के उच्चारण के समय हवा मुँह के विभिन्न भागों से टकराये और साँस में गर्मी पैदा कर दे, उन्हें उष्म व्यंजन कहते है।
ऊष्म = गर्म। इन व्यंजनों के उच्चारण के समय वायु मुख से रगड़ खाकर ऊष्मा पैदा करती है यानी उच्चारण के समय मुख से गर्म हवा निकलती है।
उष्म व्यंजनों का उच्चारण एक प्रकार की रगड़ या घर्षण से उत्पत्र उष्म वायु से होता हैं।
ये भी चार व्यंजन होते है- श, ष, स, ह।

व्यंजन अन्य के भेद | Other Consonants

संयुक्त व्यंजन :- जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं।
ये संख्या में चार हैं :
क्ष = क् + ष + अ = क्ष (रक्षक, भक्षक, क्षोभ, क्षय)
त्र = त् + र् + अ = त्र (पत्रिका, त्राण, सर्वत्र, त्रिकोण)
ज्ञ = ज् + ञ + अ = ज्ञ (सर्वज्ञ, ज्ञाता, विज्ञान, विज्ञापन)
श्र = श् + र् + अ = श्र (श्रीमती, श्रम, परिश्रम, श्रवण)
संयुक्त व्यंजन में पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

संयुक्त व्यंजन क् + ष = क्ष
त् + र = त्र
ज् + ञ = ज्ञ
श् + र = श्र

संयुक्त व्यंजन क्ष=क्+ष्+अ\क्+ष
त्र=त्+र्+अ\त्+र
ज्ञ=ज्+ञ्+अ\ज्+ञ
श्र=श्+र्+अ\श्+र

द्वित्व व्यंजन :- जब एक व्यंजन का अपने समरूप व्यंजन से मेल होता है, तब वह द्वित्व व्यंजन कहलाता हैं। जैसे- क् + क = पक्का
च् + च = कच्चा
म् + म = चम्मच
त् + त = पत्ता
द्वित्व व्यंजन में भी पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है।

संयुक्ताक्षर :- जब एक स्वर रहित व्यंजन अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तब वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं।
जैसे- क् + त = क्त = संयुक्त
स् + थ = स्थ = स्थान
स् + व = स्व = स्वाद
द् + ध = द्ध = शुद्ध
यहाँ दो अलग-अलग व्यंजन मिलकर कोई नया व्यंजन नहीं बनाते।



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